नारद - नारायण,नारायण..
(आवाज सुनते ही )
भगवन - कहो नारद,कैसे हो?कब लौटे पृथ्वीलोक से?कैसी रही नदी मिलन यात्रा?कावेरी कैसी है?
नारद-साँस तो लें भगवन, ...न पूछें तो ही अच्छा है, बेचारी तप रही है आग से .... उसी का संदेस लाया हूँ ,कह रही थी - मुझे बर्फीली नदी बनना है ...गन्दगी तो सहन कर लूँगी पर आग में झुलस कर तंग आ गई हूँ,बर्फ होकर बहूंगी तो कुछ तो पानी बचेगा..और नहीं बही तो जिसके हिस्से में जितनी हूँ वहीँ जम रहूंगी ... मेरा पानी बचाने... आग को तो परेशान नहीं करेंगे ये आँखों का पानी सूखाए लोग!
भगवन- जाओ नारद ,कावेरी को साथ ले आओ...बहुत बह ली ...लोग तो उसे चुल्लू भर न उपयोग कर पा रहे... :-(
और एक नदी का अंत हुआ....
6 comments:
गन्दगी तो सहन कर लूँगी पर आग में झुलस कर तंग आ गई हूँ,बर्फ होकर बहूंगी तो कुछ तो पानी बचेगा..और नहीं बही तो जिसके हिस्से में जितनी हूँ वहीँ जम रहूंगी !
आज कावेरी के जो हालात हैं उस पर सही लिखा है आपने
कम शब्दों में बहुत बढ़िया तरीके से कावेरी विवाद स्पष्ट किया है आपने।
कावेरी की वेदना का सुन्दर चित्रण .
कावेरी की वेदना का सुन्दर चित्रण .
लुप्त हुई सरस्वती और अब सूखती हुई गंगा के बाद आग की लपटों में झुलसी कावेरी... बहुत ही संतुलित और मार्मिक चित्रण है अर्चना!
प्रभावी प्रस्तुति
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