Saturday, September 23, 2017

सुनो,समझो,करो!-एक संदेश बच्चों के लिए

जहाँ तक मैंने बालमन को समझा है,वो बड़ों को देखकर ज्यादा और जल्दी सीखता है,वही करने की कोशिश करता है,अगर अपने वाकये,कहानियां,किस्से बताएं जाएं तो वो खुद को उस जगह रखकर सोचने लगता है,उन्हें  ये कहने के बदले- कि ऐसा मत करो ,वैसा मत करो ,अगर कहें कि करके देखना पड़ेगा,नुकसान होगा कि फायदा तो वे अपने तर्क से समझने की कोशिश करेंगे ,तब बस उनके सवालों की बारिश झेलना पड़ेगी हमें 😊👍
आजकल के माहौल को देखते हुए ....
मेरी एक कविता सभी बच्चों के लिए-

मिला कदम से कदम ,
समय की पुकार सुन।
निडर रहकर सामना करने,
हिम्मत की तलवार चुन।
छल-कपट को छोड़कर,
बुद्धि को बना हथियार ।
स्वाभिमान से हो विजयी,
चाहे लक्ष्य हो कितना दुश्वार।

-अर्चना
(चित्र में अनूप शुक्ल जी की पुस्तक के साथ "मायरा")

10 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर कविता.

Onkar said...

बहुत बढ़िया

pushpendra dwivedi said...

वाह बहुत खूब बढ़िया रचनात्मक अभिव्यक्ति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-09-2017) को
"एक संदेश बच्चों के लिए" (चर्चा अंक 2737)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Udan Tashtari said...

क्या बात है!!

कविता रावत said...

बहुत सुंदर ..

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सौ सुनार की एक लौहार की “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

उम्दा प्रस्तुति

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब

Sadhana Vaid said...

बहुत बढ़िया ! नानी का चश्मा पहन नानी की ही प्रतिछवि लग रही है प्यारी मायारा !