Monday, November 29, 2021

जीवन की सांझ में एक विचार


साँझ की बेला, दूर क्षितिज पर
सूरज ले रहा है विदा,अपनी धूप को सिमटा कर

लालिमा ले बादल ने पहन लिए रंगबिरंगी कपड़े
पंछी खेलते उड़ते,लौट चले अपने नीड़ को काम निपटा कर

पसरते ही छांह,आवाज हो गई मद्धम सबकी
मौन करने लगा तैयारी चीत्कार की
दुख को अपने साथ चिपटा कर

मैने जाते सूरज को देख आवाज लगाई
ये कहते कि कल जब आना नया सबेरा लाना
सुख के साथ तरबतर,लिपटा कर
अर्चना
(जन्मदिन की पूर्व संध्या,(25/10/2021) पर नर्मदा किनारे रिसोर्ट के फोटो)


फोटो - वत्सल चावजी 

फोटो -  वत्सल चावजी

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-12-2021) को चर्चा मंच          "दम है तो चर्चा करा के देखो"    (चर्चा अंक-4265)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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जन्मदिन की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

SANDEEP KUMAR SHARMA said...

अच्छी रचना है...नर्मदा के कौन से किनारे...क्योंकि हम वहीं के हैं...।

Archana Chaoji said...

खलघाट,मध्यप्रदेश

Onkar said...

अच्छी रचना