Sunday, January 9, 2022

बचपन और बचपना

हम फिर से बच्चे बन जाएं
आंगन में खेलें गिल्ली -डंडा,
गोल गोल कांच की गोटियां
छुप जाएं कपास की थप्पी में,
खींच कर भागे एक दूसरे की चोटियां
जब खूब थक जाएं तो
बांट कर खा लें आधी आधी रोटियां...

ऐ दोस्त 
दो मिनट के लिए ही सही
पर जरूर मेरे घर आना 
और हां
अपना बचपन साथ लाना...
अर्चना

1 comment:

Onkar said...

बहुत सुंदर सृजन