हम फिर से बच्चे बन जाएं
आंगन में खेलें गिल्ली -डंडा,
गोल गोल कांच की गोटियां
छुप जाएं कपास की थप्पी में,
खींच कर भागे एक दूसरे की चोटियां
जब खूब थक जाएं तो
बांट कर खा लें आधी आधी रोटियां...
ऐ दोस्त
दो मिनट के लिए ही सही
पर जरूर मेरे घर आना
और हां
अपना बचपन साथ लाना...
अर्चना
1 comment:
बहुत सुंदर सृजन
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