(फोटो मोबाइल से एकदम ताजा खींचा भाभियों के बगीचे से मां के आंगन में धूप खाते हुए,और फोटो देख यहीं पंक्तियां लिखी बेटी दिवस पर।)
नागचंपा के आंचल में,
यूं ही गुड़हल सी सुर्ख हो,
हंसती,खेलती,
खिलखिलाती,झूमती रहे
बेटियां
स्वेच्छा से गुलाब का हाथ पकड़,
या गुलाब को परे धकेल
आगे बढ़ आकाश को छू ले बेटियां।
- अर्चना
6 comments:
सुंदर रचना...
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-01-2022) को चर्चा मंच "मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र" (चर्चा-अंक4322) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह क्या खूब कहा आपने बहुत ही सुंदर भाव
बहुत ही सुन्दर रचना
choti par achhi kavita
Ye dosti hum nahin todenge
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