Tuesday, January 25, 2022

बेटियां


(फोटो मोबाइल से एकदम ताजा खींचा भाभियों के बगीचे से मां के आंगन में धूप खाते हुए,और फोटो देख यहीं पंक्तियां लिखी बेटी दिवस पर।)

आम की छांह में,
नागचंपा के आंचल में,
यूं ही गुड़हल सी सुर्ख हो,
हंसती,खेलती,
खिलखिलाती,झूमती रहे
बेटियां
स्वेच्छा से गुलाब का हाथ पकड़,
या गुलाब को परे धकेल
आगे बढ़ आकाश को छू ले बेटियां।
- अर्चना

6 comments:

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

सुंदर रचना...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-01-2022) को चर्चा मंच        "मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र"   (चर्चा-अंक4322)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

Manisha Goswami said...

वाह क्या खूब कहा आपने बहुत ही सुंदर भाव

Abhilasha said...

बहुत ही सुन्दर रचना

INDIAN the friend of nation said...

choti par achhi kavita

Hindi Planet Lyrics said...

Ye dosti hum nahin todenge