Monday, November 7, 2011

माय लाईफ़ स्टोरी ...पर मेरी नहीं ..

 "मेरी जीवन गाथा"..भाग २
...कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनकी व्याख्या नहीं की जा सकती .............इसलिए नहीं की वे अजीब होते हैं,बल्कि इसलिए कि वे सामान्य रिश्तों से ऊपर होते हैं --जिनको परिभाषित नहीं किया जा सकता। कुछ लोग इस तरह के रिश्तों को दोस्ती का नाम दे देते है लेकिन अधिकतर ऐसे रिश्तों को शक की निगहों से ही देखते हैं ।...मेरे-शान्तनु के साथ लगाव से बने रिश्त्ते को भी कोई नाम नहीं दिया जा सकता या उसे शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता ।...........एक बेनामी समबन्ध !............हम प्रेमी -प्रेमिका नहीं थे,  फ़िर भी हम सिर्फ़ दोस्त भी नहीं थे ।हम दोनों के बीच में कुछ खास था जो हम एक -दूसरे से बांटते थे ...................भौतिक दुनिया से परे ....कुछ अलग ,कुछ खास ...जिसे कोई भी अब तक समझ नहीं सका है ।
               आज जब मैं अपने अतीत की गहराईयों में झांकती हूँ,तो मेरे सामने एक प्रश्न खडा हो उठता है---मैं अपने आप से पूछती हूँ--- क्या मुझे शान्तनु से शादी कर लेनी चाहिए ?,क्या एक मौका दिया जा सकता था ?और उत्तर भी जैसे तैयार रहता था ----"नहीं" । जबकि मैं उसकी बेटी की माँ हूँ--फ़िर भी शान्तनु वो व्याक्ति नहीं है,जिसे मैं अपने जीवन साथी के रूप में देखाना चाहती हूँ। मैं उसके साथ हमबिस्तर होने की कल्पना भी नहीं कर सकती ।उसका मेरी जिन्दगी में होना एक सुखद घटना थी --इस बारे में कोई शक नहीं है मुझे।हम दोनोंने जीवन-यात्रा में ऐसे सहयात्री बनकर यात्रा की --जो साथ चलते-चलते मिले और फ़िर अन्त में अपनी-अपनी राह चले गए।
                     शान्तनु अपने स्वर्गीक पडाव पर पहले ही पहुँच गया ,यहां तक कि मुझे उससे प्यार करने का मौका भी नहीं मिला।मैं बहुत आश्चर्यचकित होती कि मुझे उससे प्यार हुआ होता,यदि वो जिवीत होता ।
                           मैं इस प्रश्न का उत्तर भी नहीं दे सकती  ---क्योंकि इस बारे में मुझे खुद निश्चित तौर पर पता नहीं था ।आखिरकार मैनें भी तो जीवन --जीते-जीते ही सब-कुछ जाना था ।एक चीज अच्छी तरह से समझ गई थी कि "जीवन की धारा अपनी मर्जी से ही बहती है उसके रास्ते और पडावों के बारे में कोई भी अन्दाजा नहीं लगा सकता" ।.....क्रमश:
पहला भाग पढ़े यहाँ --१

11 comments:

Amrita Tanmay said...

विचारणीय सवाल

प्रवीण पाण्डेय said...

यह प्रश्न सदा ही कुरेदता रहा है समाजशास्त्रियों को

Satish Saxena said...

सच है यह...
शुभकामनायें !

वाणी गीत said...

कुछ रिश्ते सभी तयशुदा नामों से ऊपर होते हैं ...अपने नहीं , मगर बहुत ख़ास , ईश्वरीय या दिव्य ही मान ले इसे !

Shah Nawaz said...

वाणी जी से सहमत हूँ!

आशा बिष्ट said...

सच में गुंथा हुआ है जीवन पथ ऐसे ही अनसुलझे सवालो से ...

Pallavi saxena said...

यह बात आपने बिलकुल सही कुछ रिश्तों की कोई परिभाषा नहीं होती। अतः उन्हें कोई नाम नहीं दिया जा सकता। मैं आपकी बातों से सहमत हूँ। यह ज़रूरी नहीं की जिस व्यक्ति से आप दुनिया में सबसे करीब हो, यह जिस के प्रति आपके मन में यह एहसास हो कि उससे ज्यादा पूरी दुनिया में आपको और कोई नहीं समझ सकता। वही व्यक्ति यदि आपका जीवनसाथी बन जाये तो आपकी शादी शुदा ज़िंदगी स्वर्ग बन जाएगी। कई बार कुछ हालात कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जो जैसे है वैसे ही रहे, तभी उनकी गर्माहट बनी रहती है और जबरन यदि उनको कोई नाम दे दिया जाये, तो वो अपनी उस गर्माहट या वो कहते हैं न bounding को खो देते हैं।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अच्छी चल रही है श्रृंखला!!

अनुपमा पाठक said...

स्वार्थरहित अनाम रिश्तों का आकाश बहुत ऊँचा होता है!

चंदन said...

कुछ रिश्ते अलग होते हैं इन नामों के रिश्ते से...

संजय भास्‍कर said...

कुछ अनाम रिश्ते अलग होते हैं