"मेरी जीवन गाथा" भाग ३
मेरे जीवन में सिर्फ़ इस एक अनुत्तरित प्रश्न के अलावा एक बात तो साफ़ हो चुकी थी ---सात सालों से चली आ रही मेरी शादी तोडने का मेरा निर्णय सही था। एक ऐसा निर्णय जो मैं ले पाई सिर्फ़ शान्तनु के सहयोग से ही ......
मेरी जीवन-यात्रा शुरू होती है--मेरे जन्म से ,परन्तु मेरी वास्तविक जीवन -यात्रा शुरू होती है ---उस दिन से जब मैंने अपनी बहन के इंजिनियरिंग कॉलेज की सीढी पर अपना पहला कदम रखा था---मेरा स्वयं का प्रवेश-पत्र जमा करने के लिए, और तब से लेकर अब तक जो कुछ भी हुआ या होता रहा ----मैं किसी पर भी नियंत्रण नहीं रख पाई। ये सब कुछ ऐसा था -जैसा कि मैंने पहले बताया कि --"मैं हर दिन को अपने तरीके से जीने में विश्वास रखती हूँ, और इसीलिए मैं जीवन-धारा की लहरों मे उछलती -बहती रही --जब तक कि मैंने अपना किनारा न पा लिया। कुछ लोगों ने कहा भी-कि मैं गलत किनारे पर जा लगी हूँ, पर मुझे विश्वास है कि मेरे जीवन में अनेकों तुफ़ानों के थपेड़े खाकर भी अन्त में मैं सही किनारे पर पहुँच ही गई।
रोशन उस टीम का सदस्य था, जिसे रामाराव आदिक टेक्नॉलॉजी इंस्टिट्यूट ने अपनी कंपनी के लिए नये और टेलेंटेड कम्प्यूटर इंजिनियर तलाशने के लिए भेजा था । वो मेरी बहन का साक्षात्कार ले रहा था और मैं अपनी बहन के कमरे से बाहर आने का इंतजार कर रही थी, ताकि हम साथ में लन्च कर सकें। मेरे साथ चंद मिनटों के बाद ही क्या कुछ घटित होने वाला है, मुझे इसका तिनके भर भी अंदाजा नहीं था। मुझे जोरों की भूख लगी थी और देर होने से बडा गुस्सा आ रहा था, क्योंकि इसके बाद दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने जाना था। मै तो उसे छोडकर ही जाना चाहती थी, मगर मेरी बहन ने मुझसे रूकने के लिए विनती की थी, सो मुझे रूकना पड़ा था ।
थोडे इंतजार के बाद वो कमरे से बाहर आई, उसके चेहरे के हाव-भाव ही मुझे बता रहे थे कि उसका साक्षात्कार अच्छा नहीं हुआ था ।....क्रमश:........
पहला भाग पढे़ यहाँ--१
दूसरा भाग पढ़े यहाँ--२
मेरे जीवन में सिर्फ़ इस एक अनुत्तरित प्रश्न के अलावा एक बात तो साफ़ हो चुकी थी ---सात सालों से चली आ रही मेरी शादी तोडने का मेरा निर्णय सही था। एक ऐसा निर्णय जो मैं ले पाई सिर्फ़ शान्तनु के सहयोग से ही ......
मेरी जीवन-यात्रा शुरू होती है--मेरे जन्म से ,परन्तु मेरी वास्तविक जीवन -यात्रा शुरू होती है ---उस दिन से जब मैंने अपनी बहन के इंजिनियरिंग कॉलेज की सीढी पर अपना पहला कदम रखा था---मेरा स्वयं का प्रवेश-पत्र जमा करने के लिए, और तब से लेकर अब तक जो कुछ भी हुआ या होता रहा ----मैं किसी पर भी नियंत्रण नहीं रख पाई। ये सब कुछ ऐसा था -जैसा कि मैंने पहले बताया कि --"मैं हर दिन को अपने तरीके से जीने में विश्वास रखती हूँ, और इसीलिए मैं जीवन-धारा की लहरों मे उछलती -बहती रही --जब तक कि मैंने अपना किनारा न पा लिया। कुछ लोगों ने कहा भी-कि मैं गलत किनारे पर जा लगी हूँ, पर मुझे विश्वास है कि मेरे जीवन में अनेकों तुफ़ानों के थपेड़े खाकर भी अन्त में मैं सही किनारे पर पहुँच ही गई।
रोशन उस टीम का सदस्य था, जिसे रामाराव आदिक टेक्नॉलॉजी इंस्टिट्यूट ने अपनी कंपनी के लिए नये और टेलेंटेड कम्प्यूटर इंजिनियर तलाशने के लिए भेजा था । वो मेरी बहन का साक्षात्कार ले रहा था और मैं अपनी बहन के कमरे से बाहर आने का इंतजार कर रही थी, ताकि हम साथ में लन्च कर सकें। मेरे साथ चंद मिनटों के बाद ही क्या कुछ घटित होने वाला है, मुझे इसका तिनके भर भी अंदाजा नहीं था। मुझे जोरों की भूख लगी थी और देर होने से बडा गुस्सा आ रहा था, क्योंकि इसके बाद दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने जाना था। मै तो उसे छोडकर ही जाना चाहती थी, मगर मेरी बहन ने मुझसे रूकने के लिए विनती की थी, सो मुझे रूकना पड़ा था ।
थोडे इंतजार के बाद वो कमरे से बाहर आई, उसके चेहरे के हाव-भाव ही मुझे बता रहे थे कि उसका साक्षात्कार अच्छा नहीं हुआ था ।....क्रमश:........
पहला भाग पढे़ यहाँ--१
दूसरा भाग पढ़े यहाँ--२
5 comments:
रोचक प्रस्तुतीकरण..इंतज़ार अगली कड़ी का..
सचमुच लग रहा है कि यह मूल लेखन है, अनुवाद नहीं!!!
लम्बा पढ़ने का मन था आज।
अगले भाग का इंतज़ार रहेगा...
बहुत ही रोचकता से लेखन निरन्तर आगे बढ़ रहा है ...अगली कड़ी की प्रतीक्षा में ..।
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