Wednesday, December 7, 2011

जीवन अकथ कहानी रे !!!

 आज एक कविता पद्म सिंह जी के ब्लॉग "ढिबरी" से ...

बिधना बड़ी सयानी रे
जीवन अकथ कहानी रे


तृषा भटकती पर्वत पर्वत
समुंद समाया पानी रे

दिन निकला दोपहर चढी
फिर आयी शाम सुहानी रे
चौखट पर बैठा मैदेखूं
दुनिया आनी जानी रे

रूप नगर की गलियां छाने
यौवन की नादानी रे
अपना अंतस कभी न झांके
मरुथल ढूंढें पानी रे

जो डूबा वो पार हुआ
डूबा जो रहा किनारे पे
प्रीत प्यार की दुनिया की
ये कैसी अजब कहानी रे

मै सुख चाहूँ तुमसे प्रीतम
तुम सुख मुझसे
दोनों रीते दोनों प्यासे
आशा बड़ी दीवानी रे



तुम बदले संबोधन बदले
बदले रूप जवानी रे
मन में लेकिन प्यास वाही
नयनों में निर्झर पानी रे
..


इसे सुनना चाहें तो सुन सकते हैं यहाँ


11 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

जीवन का दर्शन इस कविता में और आनंद स्वर में!!

प्रवीण पाण्डेय said...

अहा, अकथ कहानी कथनीय रंग बन कर छिटक गयी है शब्दों में।

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut sundar

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

Mamta Bajpai said...

बहुत सुन्दर रचना ..जीवन की सच्चाई का
सार्थक चित्रण ..बधाई

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही सहज और सीधी सरल पर मन को छूने वाली प्रस्तुति ... उतना ही मीठा कंठ ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जीवन की कहानी को सुंदर शब्दों में ढाला है..... बहुत बढ़िया प्रस्तुति

ZEAL said...

Great philosophical creation !

ZEAL said...

Great philosophical creation !

सागर said...

bejod abhivaykti...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत अच्छी कविता है।