न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Tuesday, January 31, 2012
Sunday, January 29, 2012
मुनिया का बचपन
---माँ........माँ .....देखो न !! इस मोटे कालू को समझा लो .........मुझे कुछ भी कह कर बुलाते रहता है..उं..हूं....उं....
---अपनी माँ से कहा रोते-रोते मुनिया ने...
माँ ---अरे!! ऐसे कोई चिढ़ता है क्या ?? तू भी तो उसे मोटा,कालू कह रही है ....
---मगर माँ मै तो उसे वही कहती हूँ जो वो है ....और वो मुझे वो कहकर चिढ़ाता है जो मैं नहीं हूँ ..
ऐसा भला कैसे??? माँ का सवाल था ।
--माँ देखो !! वो मुझे मोटी कहता है, मैं मोटी नहीं हूँ न ?.....हँस दी थी माँ ...
--तो ये तो वो आज थोडे़ ही न कह रहा है पहले भी कहता रहा है ..दोस्त है तेरा, दोस्त की बात का बुरा नहीं मानते...
...समय के थपेड़ों से बच्ची बन चुकी अपनी पचास वर्षीया बेटी मुनिया का सर अपनी गोदी में रख बालों को सहलाते हुए तिहत्तर वर्षीय माँ समझा रही थी.....
मुनिया का कहना जारी रहा---- वो अब मुझे "देवी" कहता है ....क्या मैं देवी हूँ ? माँ तुम तो कहती हो सब कुछ देवी की ईच्छा से होता है ....क्या सब कुछ मेरी ईच्छा से हुआ है ? माँ अब चुप थी .....
..और मुनिया ..........फ़िर पीछे दौड़ पड़ी थी अपने दोस्त को कालूउउउउउउ मोटेऎऎऎऎऎ कहते हुए............
बचपन में जीना और बचपन को जीना सीख लिया था मुनिया ने ..........
---अपनी माँ से कहा रोते-रोते मुनिया ने...
माँ ---अरे!! ऐसे कोई चिढ़ता है क्या ?? तू भी तो उसे मोटा,कालू कह रही है ....
---मगर माँ मै तो उसे वही कहती हूँ जो वो है ....और वो मुझे वो कहकर चिढ़ाता है जो मैं नहीं हूँ ..
ऐसा भला कैसे??? माँ का सवाल था ।
--माँ देखो !! वो मुझे मोटी कहता है, मैं मोटी नहीं हूँ न ?.....हँस दी थी माँ ...
--तो ये तो वो आज थोडे़ ही न कह रहा है पहले भी कहता रहा है ..दोस्त है तेरा, दोस्त की बात का बुरा नहीं मानते...
...समय के थपेड़ों से बच्ची बन चुकी अपनी पचास वर्षीया बेटी मुनिया का सर अपनी गोदी में रख बालों को सहलाते हुए तिहत्तर वर्षीय माँ समझा रही थी.....
मुनिया का कहना जारी रहा---- वो अब मुझे "देवी" कहता है ....क्या मैं देवी हूँ ? माँ तुम तो कहती हो सब कुछ देवी की ईच्छा से होता है ....क्या सब कुछ मेरी ईच्छा से हुआ है ? माँ अब चुप थी .....
..और मुनिया ..........फ़िर पीछे दौड़ पड़ी थी अपने दोस्त को कालूउउउउउउ मोटेऎऎऎऎऎ कहते हुए............
बचपन में जीना और बचपन को जीना सीख लिया था मुनिया ने ..........
Tuesday, January 10, 2012
हर खुशी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे
पल्लवी और नेहा--------------एक गीत तुम्हारे लिये-------
अनुराग जी की मदद से ऑडियो तो हासिल कर लिया पर तंग आ गई इसका ऑडियो नहीं बजने को तैयार हुआ डिव शेअर मुझसे रूठा है आपको सुनाए तो सुन लेना --यहाँ --http://www.divshare.com/download/16542726-2d6
मगर ये उसे पसन्द आ गया शायद ---
(राजेन्द्र स्वर्णकार जी कि एक रचना)
और ये गीत तुम सबके लिये -----
अनुराग जी की मदद से ऑडियो तो हासिल कर लिया पर तंग आ गई इसका ऑडियो नहीं बजने को तैयार हुआ डिव शेअर मुझसे रूठा है आपको सुनाए तो सुन लेना --यहाँ --http://www.divshare.com/download/16542726-2d6
मगर ये उसे पसन्द आ गया शायद ---
(राजेन्द्र स्वर्णकार जी कि एक रचना)
और ये गीत तुम सबके लिये -----
Tuesday, January 3, 2012
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