बस तुम ही तुम ...
मेरे अपने 
बादलों की ओट में 
जा छुपे कहीं
सपने भी खो चुके 
ना जाने कब कहाँ...
तारों की लड़ी 
यूँ पलकों से झड़ी 
रात की बेला 
मन तनहा मेरा
चाँद ही मेरा साथी...
बिखरे तारे
चंदा संग नभ में 
तुम्हें भी देखा
पलकें होती बन्द 
धुंधला जाता सब...
कैसे बीतेंगे 
अब ये दिन-रैन
जिया ना लागे 
हर पल यादों में 
बस तुम ही तुम... 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
7 comments:
बिखर जाते
चंदा संग नभ
तुम्हें भी देखा
पलकें होती बंद
धुधला जाता सब
अपनों के साथ सुहाने पलों की याद बहुत हसीं . कभी कभी दर्द भरी
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति है, प्रकृति मन बाहर उड़ेलने को प्रेरित करती है।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ
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गूगल हिंदी टायपिंग बॉक्स अब ब्लॉगर टिप्पणियों के पास
badhiya abhivykti...
वाह ... बेहतरीन
हिन्दी दिवस की अनंत शुभकामनाएं
मनभावन तस्वीरें और गहरी अभिव्यक्ति.. और क्या कहूँ!!
मन को छूते हुवे शब्द ...
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