Saturday, November 10, 2012

वो शाम ...


ठंडी पड़ती धूप

उस पर सिंदूरी सा रूप
हल्की-हल्की बहती हवा
गम दूर करने की जैसे दवा
महक जिसमें होती खास
जगती तुझसे मिलने की आस
इन्तजार का होता खात्मा
और जी उठती मेरी आत्मा
न होता कोई और काम
बस आराम ही आराम
बीतती ऐसी मेरी हर शाम
काश! बस तेरे ही नाम...
-अर्चना

10 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वो शाम कुछ अजीब थी,
ये शाम भी अजीब है.
वो कल भी पास-पास थी
ये आज भी करीब है!!

Anju (Anu) Chaudhary said...

एक इंतज़ार ....जो कभी खत्म नहीं होगा





दीवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

Ramakant Singh said...

SHUBH DIPAWALI .BAHUT HI SUNDAR BHAW

Unknown said...

सुंदर भावपूर्ण रचना |

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भावप्रवण रचना ....


दीपावली की शुभकामनायें

प्रवीण पाण्डेय said...

शाम ढली सी,
रात भली सी,
कल जिजीविषा,
मिले कली सी।

समयचक्र said...

दीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
त्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

इन्तजार का होता खात्मा और जी उठती मेरी आत्मा..तब शांत हो जाती बेचैन आत्मा भी।

Dr ajay yadav said...

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ...भाव बहुत सकारात्मक और अच्छे हैं |मैंने भी एक शेर पढ़ा था-
LOVE IS DIVINE GOODNESS ....WORSHIP IS CAUSED BY FEAR.
आशिकी से मिलेगा ,..... ऐ जाहिद !
बंदगी से ,..... ....खुदा नहीं मिलता।
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-दाग
जाहिद = संयमी, संयम-नियम और जप-तप करने वाला // बंदगी = पूजा, इबादत