Tuesday, December 4, 2012

मीठी याद - स्मृतियों के झरोंखे से

 कई साल बीत गए,कभी सोचा नहीं था कि ये कविता मेरे हिस्से आएगी...पर जो भी मधुर एहसास होते हैं, वे स्मृतियों में जिंदा रहते हैं हमेशा... और ये तो मीठी बोली भी है ...जब पहली बार आसनसोल गई तो कामवाली बाई बंगालीभाषी  थी ,हिंदी बिलकुल भी बोल नहीं पाती थी और मैं बंगाली मुश्किल से समझती थी और बोलना तो और भी मुश्किल ..जब हम एक-दूसरे को अपनी बात समझाते थे तो उसका कहा एक वाक्य आज भी याद आता है --- थेके थेके या थाके थाके  शिके जाबो....जैसा कुछ कहा करती थी वो मुझसे ........

मृदुला प्रधान जी के ब्लॉग से एक कविता पढ़कर रिकार्ड करने की कोशिश की है ,मैं बंगला जानती तो नहीं पर करीब २० साल पहले कुछ समय के लिए बंगला मकान मालिक के घर में रहने का सौभाग्य मिला था,तो कुछ स्मृति के आधार पर ही किया है,शायद ठीक हुआ हो...

8 comments:

शिवम् मिश्रा said...

सच कहूँ तो यह कोई भी सुनने वाला कह देगा कि आप बंगाली भाषी नहीं है ... पर उस के बवजूद आपने जिस शिद्दत से इस कविता को पढ़ा है उसने भाषा की सीमा के आगे जा कर अपनी छाप छोड़ी है ... बधाइयाँ !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बहुत ही मीठी लगी यह कविता और कविता पाठ.. बांग्ला भाषा है ही ऐसी!! एकदम रोशोगोल्ला!!

Ramakant Singh said...

अवर्णनीय पाठन बहुत ही मनमोहक

सदा said...

वाह ... क्‍या बात है !!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत मीठी कविता..

Akash Mishra said...

२ साल से बंगाल में (दुर्गापुर) रहने के कारण बँगला कुछ कुछ समझ सकता हूँ |
बहुत प्यारी कविता और आपका अच्छा प्रयास |

सादर

mridula pradhan said...

मैं आभारी हूँ आपकी और खुश भी कि आपको ये कविता इतनी पसंद आई.……।

mridula pradhan said...
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