Tuesday, December 18, 2012

एक कहानी दो सहेलियों की

आज वाणी गीत जी के ब्लॉग ज्ञानवाणी से एक कहानी दो सहेलियों की
शीर्षक है - "रूठना कोई खेल नहीं"

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कहानी का पढ़ना और अब आप से सुनना एक अनुभव रहा है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

तुम सचमुच अपने ढंग की अनोखी हो.. और यह बात इसलिए नहीं कह रहा कि मेरी छोटी बहन हो तुम!! सच्ची, कहानी का रूप ही नया हो जाता है!!

वाणी गीत said...

बहुत आभार !

Ramakant Singh said...

खनकती आवाज में वाणी गीत जी के * रूठना कोई खेल नहीं * का सुन्दर वाचन

Himanshu Pandey said...

सुना! बेहतर काम हुआ है यह! कई बार सुनने का प्रभाव कुछ ज्यादा होता है।
आभार।

अरुण चन्द्र रॉय said...

prabhavshali swar... bahut bdhiya

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यह कहानी भी दिल को छूती है। आज सुन..पढ़ पाया।..आभार। अब तो आप के सुनाए हर गीत, कहानी को दौड़ कर पढ़ना पड़ेगा..जो छूट गया वह भी।