Thursday, February 28, 2013

आनन्द---1

आनन्द....
हाँ यही नाम है उसका..वो मिला मुझे नेट की दुनिया में कदम रखते ही...मई २००९ से भी पहले ...
हाँ जब से नेट के बारे में जाना पहले जी मेल ,फ़िर ब्लॉग,फ़िर ऑर्कुट और अब फ़ेसबुक ...सबके बारे में जाना और समझा...जी मेल और ब्लॉग तो बहुत काम में लेती हूँ खुद के लिए ..और फ़ेसबुक खबरों के लिए...
लेकिन जो छूट गया वो है ऑर्कुट ....आजकल नहीं के बराबर आना -जाना होता है वहाँ...
तो मैं बता रही थी आनन्द के बारे में ...२५-२८ साल का ऐसा लड़का जिसके बारे में पहले नहीं जानती थी...
ऑर्कुट पर एक सोशल ग्रुप देखा तो रहा नहीं गया मुझसे ...उसकी गतिविधियाँ देखने के लिए पढ़ती रहती थी उस पर आए मेसेज.....
और एक दिन आनन्द का एक मेसेज पढ़ा--- बंगलौर में एक नेत्रहीन छात्र पैसे के अभाव में फ़ीस जमा नहीं कर पा रहा है उसे मदद कीजिये ....नम्बर पर ...बात कर सकते हैं ...कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं आपकी मदद समय पर मिल जाए तो वह इसी वर्ष परीक्षा दे सकेगा परीक्षा का .....वगैरह....
और मन किया कि बस कुछ करना है ....तभी छोटा भाई ट्रांस्फ़र होकर बॉम्बे से बंगलौर गया था ,तुरंत उसे फोन लगाया और सारी बात बताई...फोन नम्बर भी दे दिया, कहा- जो बन पड़े करना...
दूसरे दिन भाई का फोन आया कि उसने बात कर ली है और आज ऑफ़िस में उसे बुलाया है ,उसके साथी के साथ आएगा,मैं बात करके उसे दे दूंगा पैसे ....
बहुत खुश हो गई थी मैं ...सोचा एक तो नेक काम होगा शायद ....
खुशी-खुशी दूसरे दिन भाई से पूछा -पता लगा कि वो आया था , उसके साथ एक मित्र को लेकर,और भाई ने रूपये दे दिये ...ये कह कर कि और कोई मदद चाहिये हो तो बताना...वो खुशी-खुशी लौट गया था ।हमने भी सोच लिया था कि उसने फ़ार्म भर दिया होगा और हमने एक नेक काम कर लिया....
लेकिन कुछ दिन बाद ही एक और मेसेज देखा आनन्द का....इस बार सबसे क्षमा याचना करते हुए लिखा था कि- उससे भूल हुई, उसके  बताए हुए बच्चे को मदद नहीं पहुँची, उसके साथी ने उसे धोखा दिया और उस बच्चे के लिए इकट्ठे किये पैसे ले गया.....और जिन लोगों ने मेरे कहने पर, भरोसा करके उस बच्चे को मदद दी मैं उन सबसे क्षमा मांगता हूँ...
मैंने ये पढ़कर आनन्द को बताया कि उसे तो मेरे भाई ने भी मेरे कहने पर मदद की थी ...उसे बहुत बुरा लगा ये जानकर ,और आनन्द नें मुझसे माफ़ी मांगी ।
मैंने आनन्द को कहा कि कोई बात नहीं तुम क्यों माफ़ी मांगोगे ,तुम्हारी कोई गलती नहीं है ,तुमने अपना फ़र्ज निभाया ,अब अगर उसे मदद नहीं मिली तो इसमें हमारी कोई गलती नहीं है ,आनन्द का कहना था ऐसी ही बातों  के कारण कोई मदद करने को आगे नहीं आता और सारी कोशिश बेकार चली जाती है ,मैंने उसे समझाया कि इन बातों के होने से हम मदद करना तो नहीं छोड़ सकते! ये ही सोच लो कि जो पैसे ले गया वो उस नेत्रहीन बच्चे से भी ज्यादा जरूरतमंद होगा...हमारा दिया किसी तक तो पहुँचा ही है ।
बात खतम हो गई ये कह कर कि इस बारे में अब बात नहीं करेंगे...
लेकिन मुझे एक बेटा मिलना था सो मिल गया...:-)
कुछ दिनों बाद पता चला  कि मेरे सहकर्मी नवीन सर की तबियत खराब हो गई है, और वे किसी ऐसे हॉस्पीटल की तलाश कर रहे हैं, जहाँ उनका ईलाज हो सके ...गुजरात में है ...ये सुनकर मुझे आनन्द की याद आई मैंने चेट पर  ये सारी बात बताई और उसने कुछ अस्पतालों की जानकारी मुझे दी ये  कहा कि जाँच करवाने के लिए कुछ दिन रूकना होगा ,सुनकर उसने जो कहा वो मैं कभी नहीं भूल सकती - "ज्यादा कुछ तो कर नहीं पाउंगा लेकिन वे चाहें तो मेरे  घर रूक सकते हैं ,एक कमरे का घर है मेरा....मेरे साथ मेरा छोटा भाई रहता है बस हम दो ..."
और जिस हक से उसने कहा था वो मेरे मन को छू गया ..कोई किसी अनजान व्यक्ति के लिए इतने भरोसे से कह रहा है,जिसे वो जानता तक नहीं ,ये बात जीवन में मुझे औरों पर भरोसा करना सीखा गई ....
आज बस इतना ही ..जारी रहेगा संस्मरण जब तब ...आनन्द के साथ ...


10 comments:

Smart Indian said...

संसार अब तक टिका है तो सज्जनों के पुण्यकर्म से ... आगे भी यही सत्कर्म जीवन को जीने योग्य बनाते रहेंगे। संस्मरण साझा करने के लिए आभार!

Akash Mishra said...

बहुत अच्छा संस्मरण साझा किया है आपने , |

सादर

Rajendra kumar said...

बहुत ही भावपूर्ण संस्करण,आभार.

Ramakant Singh said...

अर्चना मेरी बहन किसी भी रिश्ते के लिए किसी खास कोंख की जरुरत नहीं होती रिश्ते दिल से निभाए जाते हैं उसके लिए प्रमाण पत्र अपने आप ऐसे ही खास मौके पर खूद ब खुद मिल जाते है . इसी विश्वास पर दुनिया आज भी कायम है .

संजय भास्‍कर said...

आपने अच्छा संस्मरण साझा किया है

mukti said...

ओह, मेरी अब तक की ज़िंदगी में मुझे बहुत से ऐसे लोग मिले हैं, जिन्होंने भलमनसाहत पर मेरा भरोसा बनाए रखा है. दुनिया सच में इन्हीं के भरोसे टिकी है.

ashish said...

इंसानियत पर भरोसा करने के लिए कुछ अच्छे लोग ही काफी होते है . साथ बने रहेंगे इस संस्मरण के .

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एक राज्य के समस्त नागरिक व्यभिचारी थे तथा वुअभिचार उनके लिए सामान्य हो गया था. उनके बढते पाप को देखकर परमात्मा ने उस राज्य को जलाकर बहसम कर देने की सोची. एक महात्मा को यह बात पता चल गयी. वे उस राज्य में गए और जाकर लोगों को सदाचार के लिए प्रेरित करने लगे. लोग न बदले और परमात्मा ने भी उस एक महात्मा के रहते उस राज्य को जलाना उचित न समझा.. बरसों बीत गए. महात्मा ने अपनी धुन न छोड़ी. कहता पहले उन्हें सन्मार्ग पर लाने को बकता रहता था, अब इसलिए बकता रहता हूँ कि कहीं स्वयं कुमार्ग पर न चल दूं.
एक दिन परमात्मा ने उस साधू को बताया कि पड़ोस के राज्य में तुम्हारी आवश्यकता है, वहाँ भी दुराचारी लोग हैं. वह साधू निकल पड़ा उस राज्य की ओर. ल्कहते हैं उसके निकलते ही आसमां से बिजली गिरी और पूरा राज्य जलाकर भस्म हो गया..
अर्चना, ऐसे ही लोगों ने इस जगत को बचा रखा है, वरना यह जगत भी कब का भस्म हो गया होता!!
बहुत प्रेरक संस्मरण!!!

प्रवीण पाण्डेय said...

धन तो आता जाता रहता है, पर संबंध बने रहते हैं, वही हमारी पूँजी है।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

बहुत प्यारा भाव है मदद का . कभी कभी धोखा होजाता है पर कभी कोई'आनन्द'भी मिल जाता है अर्चना जैसी बहिन को