Wednesday, March 13, 2013

जिसने विश्व रचा है उसने ...

अहसासों को कलम में उतारना आसां तो नहीं है
मगर कलम को बोलते सुनना अच्छा लगता है ...
 
आज कलम बोल रही है शीष राय जी की --
 

रात:, संध्या, सूर्य, न्द्रमा, भूधर, सिन्धू, नदी, नाला
जल, थल, नभ क्या है? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला

विश्व नियंता कभी न देखा, पर इतना कह सकता हू
जिसने विश्व रचा है उसने , प्रथम बनाई बशाला...
आप सुनिये यहाँ ---

11 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी यह प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
धन्यवाद

ashish said...

धन्यवाद , मेरी साधारण सी कविता आपके काठ से गुजरकर अद्भुत लगी .

ashish said...

काठ ----कंठ

shikha varshney said...

Jaisi sundar Rachna vaise hi sundar swar

प्रवीण पाण्डेय said...

कविता पहले पढ़ चुका था, सुनकर अनुष्ठान पूर्ण हुआ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

कमाल करती हैं आप भी .... बहुत सुंदर

Anupama Tripathi said...

भावपूर्ण कृति ....भावपूर्ण स्वर .....!!

Rajendra kumar said...

बहुत ही भावपूर्ण रचना.

अनूप शुक्ल said...

बहुत सुन्दर,ओजस्वी स्वर! इस पॉडकास्ट को सुनने के बाद कलकी चर्चा में ये अपडेट करना पड़ा-
अपडेट:आशीष जी की वधशाला को ब्लॉगजगत की आधिकारिक पॉडकास्टर अर्चना चावजी ने अपना ओजस्वी स्वर प्रदान किया है। सुनिये।बकौल आशीष राय -उनकी साधारण कविता अर्चनाजी के कंठ से गुजरकर अद्भुत हो गयी।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या बात... बहुत सुन्दर.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

छा गयी बधशाला....अब प्रकाशित करवा डालो आशीष :)