"अजीब सी है
ये रिश्तों की
गहराती दलदल
आओ डूब कर
कहीं दूर मिल जायें "…… निवेदिता
पढ़कर मेरे मन में जो आया वो उसके कमेंट में लिखा -
"चलना मुश्किल है
इस दलदल में
एक-दूजे क स
आओ मिलकर
इनमें डूब जाएं" .....अर्चना
......निवेदिता से कहा- "मेरी पंक्तियों के बाद तुम्हारी पढ़ने में अच्छा लग रहा है ...आगे बढ़ाओ इसे" ..और कुछ समय बाद ही उनकी ब्लॉग पोस्ट तैयार होने की खबर मिल गई ... सोचती रही मैं उसके बाद भी मन में उथल-पुथल होती रही...और ये लिखा मैंने ---
"रिश्तों का दलदल"
सोंधी सी महक
भर दें
सबके मन में
आओ बदरिया बन
एहसासों की बूँदे
हम बरसाएँ......
प्यास न रहे
बाकी
किसी की
सबके होठों पर
प्रेम की अम-रसिया
हम छलकाएँ......
नमीं न हो
आँखों में
किसी की
आओ हौले से
गोद में ले
सिर सहलाएँ......
एहसासों की बूँदे..
प्रेम की अम-रसिया..
और असीम स्नेह के साथ..
इनकी गहरी अनुभूती ..
कोई शक नहीं कि
हम रिश्तों के
दलदल में फ़ँस जाएँ.....
-अर्चना ....
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