Wednesday, February 26, 2014

रिश्तों का दलदल...

आज निवेदिता ने फ़ेसबुक पर कुछ पंक्तियाँ लिखी -

"अजीब सी है
ये रिश्तों की
गहराती दलदल
आओ डूब कर
कहीं दूर मिल जायें "…… निवेदिता

 
पढ़कर मेरे मन में जो आया वो उसके कमेंट में लिखा -
"चलना मुश्किल है
इस दलदल में
एक-दूजे क स
आओ मिलकर

इनमें डूब जाएं" .....अर्चना
 

......निवेदिता से कहा- "मेरी पंक्तियों के बाद तुम्हारी पढ़ने में अच्छा लग रहा है ...आगे बढ़ाओ इसे" ..और कुछ समय बाद ही उनकी ब्लॉग पोस्ट तैयार होने की खबर मिल गई ... सोचती रही मैं उसके बाद भी मन में उथल-पुथल होती रही...और ये लिखा मैंने ---
 

 "रिश्तों का दलदल"
सोंधी सी महक
भर दें
सबके मन में
आओ बदरिया बन
एहसासों की बूँदे
हम बरसाएँ......

प्यास न रहे
बाकी
किसी की
सबके होठों पर
प्रेम की अम-रसिया
हम छलकाएँ......

नमीं न हो
आँखों में
किसी की
आओ हौले से
गोद में ले
सिर सहलाएँ......

एहसासों की बूँदे..
प्रेम की अम-रसिया..
और असीम स्नेह के साथ..
इनकी गहरी अनुभूती ..
कोई शक नहीं कि
हम रिश्तों के
दलदल में फ़ँस जाएँ.....
-अर्चना ....


और ये सब सुनना हो तो यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं---


12 comments:

निवेदिता श्रीवास्तव said...

भइया तो दो बहनों की अभिव्यक्ति के बीच समझदारी से नो कमेंट स्टाइल में मुस्करा के निकल लिये .... हैं न दी :)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अरे नहीं भाई!! ये स्माइली दोनों बहनों की जुगलबन्दी पर था!!अर्चना के गाने पर मैं स्माइली ही लगाता हूँ!! :)

Archana Chaoji said...

मैंने गाना तो गाया ही नही :-(

Archana Chaoji said...

मैंने गाना तो गाया ही नही :-(

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत प्यारी जुगलबन्दी,
आओ नयी विधा बनायें

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

तुम्हारे पॉडकास्ट के लिये हमेशा गाना ही निकलता है मुँह से.. जैसे मम्मी आज भी ग़ज़ल को क़व्वाली कहती हैं!! :)

Ramakant Singh said...

रिश्तों कि जुगल बंदी बेहतरीन

Onkar said...

सुन्दर रचना

Onkar said...

सुन्दर रचना

Unknown said...

हृदय स्पर्शी रचना

Kailash Sharma said...

नमीं न हो
आँखों में
किसी की
आओ हौले से
गोद में ले
सिर सहलाएँ......
...बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

संजय भास्‍कर said...

हृदय स्पर्शी रचना