1)
जिन्दगी ऐ जिन्दगी तेरे हैं दो रूप.....
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२)
करना फकीरी फ़िर क्या दिलगिरी सदा मगन मैं रहना जी ....
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
इस बार रक्षाबंधन के दिन सोमालीपुरम घूमने गए। (इंदौर के पास एक पार्क)
बच्चों ,माँ और भाई-भाभीयों के साथ और बच्चे बने रहे दिन भर ....
कुछ मेंबर जल्दी पहुँच गए थे
हम पीछे रह गए थे, हमें उन्होंने सूचना दी कि आज अखबार में कूपन छपे हैं जिसे साथ लाने पर 10% छूट हर एक्टिविटी पर मिल रही है पेपर साथ ले आना ।चूँकि हम घर से निकल चुके थे और उस वक्त कोई पेपरवाला भी नज़र नहीं आने वाला था(११ बज चुके थे)..
एक जगह एक दूकान में एक व्यक्ति पेपर पढ़ते हुए दिखाई दिया
बस! फिर क्या था ...निलेश फटाफट गए माँगने ।
- भैया पेपर दिखाएंगे
-हाँ क्यों नहीं, क्या आया है?
-एक विज्ञापन देखते हुए ... ये पेपर रख लूं?
-अरे भैया !अभी तो पढ़ा भी नहीं है !
-प्लीज भैया फेमेली के साथ सोमानीपुरम ........छूट है पता चला ...दे दीजिये!
- अच्छा!! ....ले जाईये .... :-)
.. ...
ऐसे तीन लोगों से पेपर लिए ,और उन्होंने खुशी-खुशी दिए भी ....
खुशी देनेवाला काम .... छोटा या बड़ा नहीं होता ,और मांग के तो देखिए ...दिल हाजिर करने वाले लोग अब भी हैं ...
.....
परिवार के जो लोग यहाँ नहीं थे उन्हें "मिस" भी बहुत किया ।...
सुबह बस स्टॉप पर खड़ी थी -स्कूल बस का इंतज़ार करते ...
सब कुछ रोज की तरह ही था ,कंपनी की स्टॉफ बस के लिए दौड़ लगाते लोग स्कूल बसों के लिए बच्चे ,सुबह घूमने और कुत्ते घुमाने वाले लोग भी वही..
और तभी उस पर नज़र पडी थी मेरी ,मेरे सामने से रोज गुजरती है वो - एक महिला करीब 28-30 वर्ष उम्र होगी ,अपनी गोदी में एक बच्चे को उठाए ,जिसे कमर पर बैठाये हुए रहती है , बेटा है शायद उसका ,दूसरे हाथ में पुराना सा छाता दबाए तेजी-तेजी से चलते हुए काम पर जाती है ,ये तो पता नहीं क्या काम करती है ,..और कहाँ जाती है .
पर उसकी छोटी बेटी उसके पीछे ,उसका आंचल पकड़ ......उससे भी तेज चलती है ,लगभग दौड़ती है.....
सोचा एक फोटो लूं .....मोबाईल निकाला ....हिम्मत नहीं हुई ........
कुछ याद आ गया था -
ऐसी ही दौड़ कभी मैं भी लगाया करती थी ......
.किरदार बदल जाते हैं हालात नहीं .....