मैं टूटी शाख़ से
उड़ती रही दर-ब-दर
गोया कि कोई पत्ती हूँ किसी पेड़ की..
शाख़ हो या दामन
जब भी छूटा करता है,
बिख़र जाता है सब-कुछ
और दर्द होता है........
सूखने को मुझको न छोड़ो
यूँ पत्ती की तरह
मिलोगे मुझसे तो हरी हो जाउंगी...
( बस ..मन हुआ और गा लिया.........) Sorry..
उड़ती रही दर-ब-दर
गोया कि कोई पत्ती हूँ किसी पेड़ की..
शाख़ हो या दामन
जब भी छूटा करता है,
बिख़र जाता है सब-कुछ
और दर्द होता है........
सूखने को मुझको न छोड़ो
यूँ पत्ती की तरह
मिलोगे मुझसे तो हरी हो जाउंगी...
( बस ..मन हुआ और गा लिया.........) Sorry..