Friday, February 6, 2009

सबकी माँ

आज maatashri.blogspot .com पर "माँ " पढ़ा| हर एक की भावनाएँ पढ़कर रोंगटे खड़े हो गए| कई प्रकारकी माताओं के चेहरे आँखों के सामने आते चले गए -------
एक
------सबसे पहले उस "माँ " का जो मेरी दादी थी ,कहते है हमारे दादा के घर में पीढियों से कोई औरतजिंदा नहीं बचती थी इसलिए कोई हमारे दादा के लीए अपनी लड़की देने को राजी नही होता था |दादी का रंगथोड़ा काला था और ऊपर से चेचक के दाग भी चेहरे पर थे तो हमारी दादी के गरीब पिता, जिनके बच्चे थे, नेअपनी बड़ी लड़की की शादी उनसे कर दी थी|उस समय घर में दादा के पिताजी तथा उनके दादाजी सहीत बिनाऔरतों का लोगों का परिवार था|दादी उस समय में चौथी तक पढ़ी थी|वे उस परिवार में बची भी और बच्चों की माँ बनी | अपने सभी बच्चों को उन्होंने ऊँचाइयों तक पहुँचाया | (बेटे बैंक मेनेजर ,वकील,- इंजीनीयर बने तो लड़कियाँ क्रमश-६टी,१०वी, एम्. एस. सी.तक पढी | मेरे पिता अपनी माँ को बहुत प्यारकरते थे ,आज वो नही है मगर मै उनकी और से उनकी माँ को नमन करना चाहती हू | उनमे गजब की हिम्मतथी वो हर नए काम को करना चाहती थी ,पढ़ने का उन्हें बहुत शौक था |हर विषय की जानकारी रखती थी |मेराखेलने का शौक उनकी आड़ पिता की शह पर ही पनपा |उनकी वजह से ही मेरे पिताजी ने मुझेमोटर-साइकिल चलाना (१९७४ में ) सीखाया था |वे कहती थी की सीखी हुयी कोई भी चीज कभी बेकार नही जाती |टी.वी .पर वे प्रवचन के साथ समाचार सुनती (हिन्दी,अंग्रेजी )दोनों भाषाओ में और हर समाचारपर अपनी बेबाक टिपण्णी भी देती |मैंने उन्हें अमिताभ,राजेश खन्ना की फिल्मे उतने ही शौक से देखते हुएदेखा है जितने शौक से वो टी. वी.पर रामायण या महाभारत देखती थी वे गावसकर औरश्रीकांत के खेल कीदीवानी थी तो उतने ही चाव से कपिल और सचिन को भी पसंद करती थी आपातकाल का मसला हो याजम्मूकश्मीर का ,घर बैठे हल सुझाया करती थी |पूजा के बाद हमेशा से घंटे उन्हें पोथी (संस्कृत में)पढ़नेमें लग जाते थे|रोज गीता का पाठ और कई स्तोत्र, मुखाग्र करती थी |कोई साथ पढ़े या पढ़े वे हर सालरामनवमी पर रामायण की समाप्ति (९दिन में नवान्हपारायण पढ़कर )करती थी| मै उनके आखरी समय मेंउनके पास ही थी अपनी शर्तों पर ही जीती थी वो और अपनी शर्तों पर ही अन्तिम साँस ली उनहोंने | उनकीयाद में एक कविता ----------
पहचानो कौन?
खाने खिलाने की शौकीन ,
प्रभु में लीन,
गुणों की खान ,
घर की शान ,
बीमारी में पास बैठती ,
सिर,हाथ, पैर दबाती ,
सोते समय कहानी सुनाती ,
जब हम ठीक हो जाते तो ,
कमर ,गर्दन ,पीठ पर चलवाती ,
कभी भी नहीं डांटती ,
पर,गेंहू बीनवाना,रोटी बेलवाना,
"गोबरपुन्जा" जैसे काम करवाती
छोटे- बड़े ,अमीर-गरीब ,
किसी में कोई भेद नहीं रखती
खेल हो या राजनीती,
फ़िल्म हो या आपबीती,
सबमे दिलचस्पी ,
आलस को करती दूर से नमस्कार ,
अतीथियो का सत्कार ,
ना माने कोई चमत्कार ,
कर्म में विश्वास ,
कूटकूट कर भरा आत्मविश्वास ,
बहुए उनसे घबराती,
बच्चों को दुलारती ,
स्कूल जाने से मना करने पर ,
कपड़े उतरवा कर ,
घर से बाहर खड़ा कर देती,
खाना अगर बाँट के खाओ ,
तो पशुओ को खिला देती,
माँगने वाला कभी गया खाली ,
"दारीवाळो", और "मुआजो ",
उनकी प्रिय थी गाली,
उनका समझाने का तरीका था विचीत्र,
वर्णन करूं तो मन देखे सचित्र |
आओ हम सब करे याद ,
नवाए शीश,झुकाए माथ,
मगर किसे ?,
नाम तो बताया नहीं ?,
परिचय तो करवाया नहीं ?
ये थी हमारी
दादी,
और नाम था
"सरस्वती ",
आओ समय के साथ पीछे जायें ,
उनकी कही कुछ बातें दोहराए ----
.सीकेलु कदी बेकार नी जातु|(सीखी हुई बात कभी बेकार नहीं जाती) |
.भगवान जो करज,अच्छा ना लेण करज। ( भगवान जो करता है, अच्छे के लिए करता है)।
.काम करवाती, हाथ नी घिसाई जाएगा|(काम करने से हाथ नहीं घीसेंगे )।
.काम सू करज त्याँ? सब हुई जायगा |( काम को क्या करना ,सब हो जाएगा)।
.काव??????,इन्न चाय दी दी?( क्यो?????। इनको चाय दी)?
.चाय पीदी की नई ?( आपने चाय पी या नही) ?
.ज़मी लिदा?ज़मी जाजो| (खाना खाया? खा के जाना )|
.वळी आवजो |(और आना )।

8 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

दादी को लेकर कही गई आपकी रचना यह साबित करती है कि हमेशा सार्थक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए,
अच्छे बुरे का निनाय सोच समझ कर लेना चाहिए , प्रचें एवं आधुनिक परिस्थितियों में मेल बैठा कर वक्त के अनुरूप चलना चाहिए
- विजय

Unknown said...

heh..."daariwaldo"..unka bistar pe peeth dabwana aur saath mein kahani sunana aaj bhi miss karta huun

उन्मुक्त said...

परिवार के बारे में जानकर अच्छा लगा।

अनूप शुक्ल said...

बेहतरीन प्रेरणाप्रद पोस्ट! सीखी हुई चीज कभी बेकार नहीं जाती!

Archana Chaoji said...

जी हां विजय जी वक्त के अनुरूप अपने को बदलना ज
जरुरी है।
उन्मुक्त जी धन्यवाद।
अनूप जी आपकी उपस्थिती मुझे प्रेरणा देगी।, धन्यवाद।
और हां वत्सल,शुक्रिया,तुम्हारी वजह से ही मै उनकी कही अनमोल बातों को सब तक पहुंचा पाई हूं।
बहुत-बहुत प्यार!!!!

Dawn said...

Wah! bahut hee dilchasp lagi aapki Daadi ki kahani...waqai... dil bhar aaya ...aur oonki dileri aur himmat ki to daad deni hee hogi ...motor cycle jo chalatin thi :)

accha laga aage bhi likhte rahein
fiza

सागर नाहर said...

अर्चनाजी
हमें भी अपनी दादीजी याद आ गई, उनके साथ बिताये पल याद आ गये। सचमुच दादी हमें इतना प्रेम करती थी कि जब तक वे जिन्दा रही किसी को हमें डाँटने का अधिकार नहीं मिला। हम कितनी भी शैतानी कर लें, मम्मीजी हमें डाँटती तो दादीजी मम्मीजी को।
बहुत सी बातें है टिप्पणी में तो लिखना भी संभव नहीं।
दादीजी की दी हुई सीख में गुजराती, मेवाड़ी और माळवी भाषा सभी का मिश्रण दिख रहा है।

Archana Chaoji said...

सेहर,
ये तो कुछ भी नही है,हमारी दादी तो----------
वैसे आपको मै बता दूं कि मोटरसाईकल दादी नहीं मै चलाती थी।
सागर जी,
दादीजी होती ही ऐसी है,किसी की भी हो मेरी या आपकी। मेवाडी भाषा तो मै जानती नही मगर इसमे निमाडी जरूर है।ये हमारी बोली है। गुजराती मे निमाडी मिक्स हो गयी है।