Monday, October 4, 2010

आज सिर्फ़ महफ़ूज़ के लिए------

अभी पाबला जी के ब्लॉग पर ये दुखद समाचार पढा---हम फ़िर साथ खेलेंगे ..
और याद आया ये गीत ....(और कुछ लिखने के लिए शब्द नही है आज )

9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

दुखद।

समयचक्र said...

bahut hi dukhad hai ..kya kahen...

राजीव तनेजा said...

दुखद...

Udan Tashtari said...

बहुत दुखद..

Udan Tashtari said...

बहुत दुखद..

Satish Saxena said...

यह मूक मगर मासूम जीव हमारे परिवार में सबसे अधिक प्यार करने वाले जीव हैं अगर तुलना की जाए तो हम इंसानों से हज़ारों गुना अधिक अच्छे ! महफूज़ अली को बहुत बड़ी क्षति हुई है !
परिवार के सदस्य की कमी की तरह ही दुखदायी है यह क्षति ! उनके आंसू हमारे शब्दों से नहीं पोंछे जा सकते !
महफूज़ के संवेदनशील मन को ईश्वर शांत करे !

arvind said...

dukhad...

संजय भास्‍कर said...

बहुत दुखद..

Anonymous said...

मेरा बाबा बहादुर है.बहुत हिम्मत वाला और वो ये भी जानता था कि जेंगो बहुत तकलीफ उठा रहा था.
किसी के दर्द को तो हम नही ले सकते है न बाबा! उसकेपास खड़े हो सकते हैं.सेवा कर सकते है पर..दर्द?
उसे अपने दर्द से मुक्ति भी बहुत लेट मिली है बाबु!
मैंने अपनी माँ को दस साल बिस्तर पर देखा है.बेटी हूँ पर रोज उनके लिए मौत मांगती थी.एक दिन सोई ,नही उठी.मैंने सुना .यही कहा-'ईश्वर तुमने मेरी माँ को दर्द से मुक्ति दे दी.'पर मेरी भाभी ने उनकी बहुत सेवा की दस साल में एक बात उनके मुंह से नही निकला कि मम्मी...
किन्तु पीड़ा पीड़ा होती है.हम नही ले सकते अपने अपने हिस्से का दर्द खुद को सहना होता है.हम तडप सकते हैं ये सब देख कर बस.