Wednesday, November 30, 2011

मुझसे नहीं होगा....


सुबह उठते ही उंगलियों कि किट-किट..शुरू होती है तो देर रात तक चलती है..
अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता.....मेरा यहाँ से निकल जाना ही बेहतर है .....
सोच रही हूँ अभी............

देखूँ कितनी देर तक सोच पाती हूँ......................:-) :-)..

जाऊँगी नहीं पर .......ये तय है..............
हार नहीं मानने वाली मैं.....ऐसे ही ............... :-) :-)
 
रोज ही ऐसा सोच लेती हूँ........

13 comments:

Smart Indian said...

मनस: वाचः कर्मणा?
सोचा, लिखा, और... और...
:)

रश्मि प्रभा... said...

is soch se ladaai chalti rahti hai...

संजय भास्‍कर said...

रोज ही ऐसा सोच लेती हूँ........जितना मर्जी सोचो पर नहीं होगा !

प्रवीण पाण्डेय said...

हार नहीं मानना है, लक्ष्य नया ठानना है।

सदा said...

यह सोच ...बेहद असरकारक है ..आभार ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मुझे पता है.. न तुम्हारे हाथ से ये की-बोर्ड छोटने वाला है और न माइक... मैं तो बस आशीर्वाद ही दे सकता हूँ कि तुम यूं ही मस्त नगमे लुटाती रहो!!!

Kailash Sharma said...

यही ज़िंदगी है, फिर हार क्यूँ मानना..

मनोज कुमार said...

सोच का सिलसिला बना रहना चाहिए।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-715:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सोच जरुरी है...अच्छी रचना...
सादर...

Udan Tashtari said...

ok, bye.

सागर said...

bhaut hi khubsurat....

कविता रावत said...

apni-apni soch hai.. haar jaana jindagi nahi...