Tuesday, June 5, 2012

हसीन मुलाकातें...कुछ यादें ...कुछ बातें

खुद से मिलना 
खुद को पाना 
खुद से मिलकर फिर 
खुद में समां जाना 
कितनी हसीन होती है ये मुलाकातें 
खुद से जब करती हूँ खुद की बातें 
न कुछ बोलना 
न कुछ सुनना 
बस  दिल का दर्द दिल ही में घोलना 
फिर उसे नम आँखों से तोलना 
ख़ामोशी सब कुछ बयां क़र जाती है 
ये सब होता है तब 
जब सिर्फ और सिर्फ  
तुम्हारी याद आती है 
 
-अर्चना
एक गीत--- न जाओ सैंया....

10 comments:

Arvind Mishra said...

आत्मलीन जैसे शकुंतला :)

प्रवीण पाण्डेय said...

गहरे भावों की बहती शान्त नदी...

शिवम् मिश्रा said...

वाह जी वाह ... बहुत खूब ...


इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दुनिया मे रहना है तो ध्यान धरो प्यारे ... ब्लॉग बुलेटिन

अनूप शुक्ल said...

कविता पढ़ना और गीत सुनना बहुत अच्छा लगा।

Asha Joglekar said...

खुद से खुद की बातें
मौन की आवाजें
और तुम्हारी याद ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत सुंदर रचना.... आडियो की वाल्यूम ही कम है शायद....
सादर

Pallavi saxena said...

अनुपम भाव सन्योंजन से सजी उम्दा पोस्ट....शुभकामनायें

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कविता सरल है पर इसे जीना कठिन है।

Udan Tashtari said...

उत्तम रचना....वाह!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

खुद को तलाशना और फिर उसमे खो जाना.. क्या कहूँ.. ये तो आत्म मंथन जैसा है...:)
और इसका कारण.. सिर्फ "वो" यानि कुछ तो प्रेम की पराकाष्ठा है ...
बहुत बेहतरीन...