कई दिनों से लिखे जा रही हूँ , जब जैसा भाव हुआ वैसा ......कभी किसी को पढ़ने के बाद तो कभी पहले .......इकठ्ठा कर लिया सब यहाँ ,अब साथ पढने को ........
उड़ने को नही पंख
मगर उड़ती हूँ बहुत मैं
चिड़िया या कोई पंछी नही
कि किसी कैद में रहूं ......
बाजुएँ मेरी काट दी जाएं फिर भी तुझे भींच लूंगी
जिजीविषा है मुझमें इतनी कि मौत से भी जीत लूंगी .......
इन्सानियत का कोई रंग अगर होता
तो गोरा और काला तो न होता आदमी
प्यार और विश्वास जो दिल में घुला रहता
तो बार-बार यूँ न रंग बदलता आदमी...
मन को लगाकर पंख भरो ऊँची उड़ान
सूरज से हाथ मिलाकर भर लो मुट्ठी में आसमान ..........
पता नहीं कहाँ आंचल फंसा है मेरा
कि आगे चल ही नहीं पाती
जाने कौनसी झाड़ी है कांटो वाली
या कि बस उसने पकड़ रखा है.....
झाँक कर देखो जरा अपने अन्दर तुम
मिलूँगी मैं तुम्हें वहीं कहीं गुमसुम...
जब इन्सान जिंदगी के पीछे भागता है, तो जिंदगी उसे मार देती है...
जब इन्सान रोज मरकर भी जीता है, जिन्दगी उसके करीब आने लगती है...
और जब वो हर पल मरकर जिंदगी को जीने लगता है जिंदगी उसकी हो जाती है ...:-)
13 comments:
कितनी समझदारी की बातें लिखी हैं तुमने!! पढ़कर लगता है वाह-वाही करने से अच्छा इन भावों को अपने जीवन में उतारना!!
जीती रहो!!
मन को भीच लेने वाले भाव । सुन्दर कविता जो कही से जोड-तोडकर लिखी गई तो बिल्कुल नही लगती ।
सूरज से हाथ मिलाने वाली सबसे अच्छी लगी !
अच्छा..सभी अच्छा..बहुत अच्छा।
ये फेसबुकी अर्चना कहाँ है दी...ये तो कोई और ही रंग देख रहे हैं हम..भीतर की सुन्दर ,संजीदी अर्चना ..
बहुत सुन्दर दी !
सादर
अनु
बहुत खूब।
हर पल की जीवटता से जीवन जीना है, मुठ्ठी भींचकर।
कितनी सुंदर पोस्ट ..... मन को ऊर्जा देती सी ...आभार
फेसबुकी अर्चना मासी कहाँ है जी
bilkul.....hum paron se nahin houslon se udte hain.....
नन्हे - नन्हे लम्हों को एक साथ पढ़ना बहुत अच्छा लगा .... सस्नेह :)
बिलकुल मन की ही कह दी,, सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति
मन के भावों की लाजबाब प्रस्तुति...!
RECENT POST -: पिता
Post a Comment