Monday, October 13, 2014

अनवरत प्रवाहमान कहानी का एक टुकड़ा

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...ये जल्दी उठने की आदत तुम्हारी थी ,मुझे लग गई ...
-तो ?अच्छी आदत है ,उठा करो ...
-हुंह !उठा करो  :P  .....बोल तो ऐसे रहे हो कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं
- ओह! हुआ क्या ? बताओ भी ...... :)
- न ,नहीं बताना ...
- प्लीज ....  बता भी दो ....रूको !रूको चाय लेकर आता हूँ फिर बताना
-चाय ?,बन भी गई ?
-हम्म !!!...
-कब ?
- न!...... ,पहले तुम बताओगी फिर मैं  .....
-अरे !!! ..... मैं तो ऐसे ही ......
- नहीं ...बताना पड़ेगा ....छुपाने का कोई प्रॉमिस नहीं हुआ था
-ओके !ओके! ... मैंने इसलिए कहा कि --जल्दी सोने की भी तो आदत थी नहीं तुम्हारी ..........और दिन में सोना मुझसे होता नहीं ........ अब उठकर अँधेरे में अकेले घूमने भी तो जाने का मन नहीं होता ...
-ओह!.... सुबह -सुबह उदासी !!! नो! ......खुश हो जाओ यार ! चलो मैं बताता हूँ -चाय कब बनाई ...
- हम्म! .....बताओ  कब ?.....बताओ जल्दी ......
.
.
.

- जब तुम सुबह का सपना देख रही थी .......
......
....
अनवरत प्रवाहमान कहानी का एक टुकड़ा ........
-अर्चना

3 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अनवरत प्रवाहमान रहे यह लेखनी। हृदयस्पर्शी है।

Onkar said...

सुंदर प्रवाहवाली रचना

अनूप शुक्ल said...

वाह!