Wednesday, October 8, 2014

अपनी भाषा

एअर इंडिया की ऊडान में अचानक समय परिवर्तन हो गया था साढे़ तीन बजे के बदले डेढ़ बजे निकलना पड़ा .... हड़बड़ी में भागना पड़ा और....  ..."अदा जी" को शुक्रिया और विदा कहने का मौका भी नहीं मिल पाया.....

दिल्ली में रूकना था ढाई घंटे ..दिल्ली से भी फोन ट्राय किया....अफ़सोस ! नहीं मिला ....

अकेले लम्बी दूरी की यात्रा करो तो दॄष्टि चारों ओर आते -जाते लोगों पर लगी ही रहती है.... मैं भी राँची से इन्दौर आते हुए यही करती रही ....थोड़ा घूम फिर कर बैठ गई एक कुर्सी पर ... बाजू में एक कुर्सी छोड़कर एक लड़की बैठी थी ...कुछ ही देर में उसके कुछ साथी आये तो वो .बेग वही छोड़कर.पीछे की तरफ़ चली गई बतियाने ,अंग्रेजी में ही बातें करते रहे वे हिंदी का एकाध शब्द  बोले ......५-६ साथी थे वे शायद इन्दौर में पढ़ाई कर रहे थे और छुट्टियाँ खतम होने पर लौट रहे थे घरों से ....


मेरे बाजू वाली कुर्सी पर मैंने भी अपना झोला रखा हुआ था, थोड़ी देर में एक विदेशी परिवार जिसमें पति-पत्नि के अलावा तीन छोटे बच्चे लगभग ६वर्ष की बड़ी बेटी ,४ वर्ष का बेटा और लगभग ३ वर्ष की छोटी बच्ची  थी ,वहाँ आया ....पत्नि की नज़रें खाली कुर्सी  खोज रही थी... मैंने अंदाजा लगते ही अपना झोला उठाकर नीचे रख लिया वे मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गईं और फोन में व्यस्त हो गईं, पति पास ही बेग रखकर टहलने लगे और बच्चे इधर-उधर खेल-घूम कर खुद का मनोरंजन करने लगे.....थोड़ी देर बाद बड़ी बेटी माँ के पास आकर बैठने की कोशिश करने लगी ... माँ ने बाजू की बैग वाली कुर्सी की ओर देखते हुए मुझसे पूछा- आप जानती हैं, ये सामान किसका है ?(स्पष्ट हिंदी में )....
चुँकि मैं जानती थी, मैंने पीछे बैठी लड़की से कहा- आपका सामान हटा लीजिए... वो आई और सामान हटा लिया , बच्ची खुश होते हुए बैठ गई माँ के पास .....
मुझे उन्हें हिंदी बोलते हुए सुनना अच्छा लगा ... मैंने पूछा- कहाँ जा रहे हैं आप ? जबाब मिला - अमेरिका ...

तुरन्त ही विमान में जाने का आदेश मिला और हम लाईन में लग अलग हो गए ....
इन्दौर में उतरने पर वे बाहर मिली ...उनके पास से गुजरते हुए रहा नहीं गया ...धन्यवाद कहने का मन था ,
मैंने कहा- बहुत अच्छा लगा आपको हिंदी बोलते हुए सुनना ... उनके चेहरे पर लम्बी सी मुस्कुराहट आ गई...खुश होकर कहा - Oh! ...Thankyou...Thankyou .....
और Bye कहकर मैं चल दी.....

2 comments:

संध्या शर्मा said...

कितनी सुन्दर भाषा और संस्कृति पाई है हमने जिसका अनुसरण करते विदेशी धन्य हो जाते हैं, वहीं अपने देश के युवा पाश्चात्य सभ्यता की अंधी दौड़ में शामिल होते दिखाई देते हैं तो बहुत दुख होता है। … बहुत बढ़िया संस्मरण

अनूप शुक्ल said...

जय हो!