सावन आँगन बरसे बूँदे,पलकन बोझा ढोय
सरर सरर मोरी चुनरी सरके सिहरन देह मा होय...
चाँद बिछावै तारा रंगोली जब चाँदनी आँगन धोय
सरस सुगंध मदन मन मोहे, सजन बुला दे कोय...
कजरा गजरा महावर रूठे, रोम-रोम हुलसाय
सखी सुन,मोरो चैन भी खोयो,विरह मोहे तड़पाय .....
-अर्चना
और इसे मैंने गाने की कोशिश भी की....
और इसे मैंने गाने की कोशिश भी की....
सुनना चाहें अगर ....
6 comments:
मर्मस्पर्शी रचना का प्रभावी गायन। शुभकामनायें!
सुनने का ऑप्शन नहीं दिखा! एक सूफ़ियाना गीत है यह, बहुत ही सुन्दर!!
उम्दा गीत एवं गायन!!
मर्मस्पर्शी रचना और गायन …
सुंदर गीत
बहुत ही लाजवाब और सुंदर गीत।
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