Saturday, December 6, 2014

विरह ...

सावन आँगन बरसे बूँदे,पलकन बोझा ढोय
सरर सरर मोरी चुनरी सरके सिहरन देह मा होय...

चाँद बिछावै तारा रंगोली जब चाँदनी आँगन धोय
सरस सुगंध मदन मन मोहे, सजन बुला दे कोय...

कजरा गजरा महावर रूठे, रोम-रोम हुलसाय
सखी सुन,मोरो चैन भी खोयो,विरह मोहे तड़पाय .....

-अर्चना
और इसे मैंने गाने की कोशिश भी की.... 
सुनना चाहें अगर ....

6 comments:

Smart Indian said...

मर्मस्पर्शी रचना का प्रभावी गायन। शुभकामनायें!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सुनने का ऑप्शन नहीं दिखा! एक सूफ़ियाना गीत है यह, बहुत ही सुन्दर!!

Udan Tashtari said...

उम्दा गीत एवं गायन!!

संध्या शर्मा said...

मर्मस्पर्शी रचना और गायन …

Malhotra vimmi said...

सुंदर गीत

कहकशां खान said...

बहुत ही लाजवाब और सुंदर गीत।