2/12/1996........2/12/2015
19 साल...
पर उस दिन को ,उस पल को
भूलना आसान नही,
भुलाना भी क्यों?
और कैसे?
जबकि अंतिम सांस की आहट
और खड़खड़ाहट
गूंजती है अब भी
कानों में
और ये आँखे बंद
होकर भी नहीं होती
महसूसती हूँ
आज भी
अंतिम स्पर्श
...................
और
सुनाई देती है चीख
अंतिम मौन की....
......................
रात भर का साथ
और निर्जीव देह
एक नहीं दो ....
बस!
दिखाई देता है
जीवन यात्रा का
पूर्णविराम
.... जहाँ लिखा था-
ॐ नमो नारायणाय......
.........
वक्त के साथ
सफर जारी है मेरा
ॐ शांति शांति शांति......
-अर्चना
वो भूली दासतां लो फिर याद आ गई ---
3 comments:
राह कठिन हो फिर भी चलना चाहिए । एसी शिक्षा मिलती है । आपके लेख से ।धन्यवाद
आपका लेख अजीब है ।
मार्मिक पंक्तियाँ
Post a Comment