Tuesday, December 15, 2015

मैं हूँ न!




मैं तुम्हें यहाँ लाई थी 
मेरी बिटिया 
मेरी लाड़ो, 
मुझे लगता था 
इस घुटन भरी दुनिया के 
कुछ बाशिन्दों को 
जीने की वजह देने से 
उनके चेहरे भी मुस्कुरा सकते हैं 
तुम्हारी मुस्कान से 
पर मैं शायद गलत थी 
ये दुनिया सिर्फ़ घुटन भरी ही नहीं है 
दहशत भरी भी है 
जहाँ साँस लेना मुश्किल है 
तुम सी तितली का..... 
नोंच कर कली को 
फ़ेंक देते हैं यहाँ दरिंदे
फूलों की खुशबू से 
उनका कुछ लेना-देना नहीं 
मैं नहीं चाहती 
तुम्हारी मुस्कान खोना 
और किसी दरिन्दे द्वारा
तुम्हारे इन्द्र धनुषी परों का कतरा जाना....
पर तुम डरो नहीं ............





मैं हूँ न!

खींच लूँंगी उनके प्राण ...
ताकि हो जाए
उसी क्षण मौत उन दरिन्दों की
जिस क्षण उनके मन में
ये विचार आए ....

जिससे -
हर कली खिले,महके 
और मुस्कुरा पाए ....
और दुनिया में
"नानी की बेटी" कहलाए 







2 comments:

कविता रावत said...

बहुत प्यारी बिटिया की तरह प्यारी प्रस्तुति ..
बिटिया को शुभाशीष व प्यार ..

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-12-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2193 में दिया जाएगा
आभार