Thursday, November 10, 2016

अँधेरा और रोशनी



दीये देते हैं रोशनी जलाने के बाद 
सुलगती है जिसके छोर पर बाती 
और फिर भी रह जाता है अंधकार 
उसके ही तले में रोशनी नहीं जाती! 

पतंगा आकर मरता है लौ पर
शायद लौ की चमक उसे है लुभाती 
जीवन का यही फ़लसफ़ा है यारा
मौत तो खुद ही अपने पास बुलाती!

क्या डरना ऐसे अंधेरे से 
जो खुद डरता है डगमगाती लौ से 
और नींद से उठकर तो जरा देख 
जीवन ही जीवन है सुनहरी पौ से !

-अर्चना

2 comments:

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

सुन्दर प्रस्तुति।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया