दीये देते हैं रोशनी जलाने के बाद
सुलगती है जिसके छोर पर बाती
और फिर भी रह जाता है अंधकार
उसके ही तले में रोशनी नहीं जाती!
पतंगा आकर मरता है लौ पर
शायद लौ की चमक उसे है लुभाती
जीवन का यही फ़लसफ़ा है यारा
मौत तो खुद ही अपने पास बुलाती!
जीवन का यही फ़लसफ़ा है यारा
मौत तो खुद ही अपने पास बुलाती!
क्या डरना ऐसे अंधेरे से
जो खुद डरता है डगमगाती लौ से
और नींद से उठकर तो जरा देख
जीवन ही जीवन है सुनहरी पौ से !
जो खुद डरता है डगमगाती लौ से
और नींद से उठकर तो जरा देख
जीवन ही जीवन है सुनहरी पौ से !
-अर्चना
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया
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