Sunday, November 6, 2016

बीती ताही बिसार दे

कल जब ऑफिस से एक्स्ट्रा काम ख़तम करके वो निकला तब रात ग्यारह बज चुके थे। ..फ़टाफ़ट घर फोन लगाकर बोला -मैं निकल रहा हूँ, और बाइक स्टार्ट की ..

.अभी ५ मिनट भी न चला होगा कि एक्सीलेटर वायर टूट गया... चारों तरफ देखा ,दुकाने बंद हो चुकी थी मेकेनिक को तलाशा कोई दुकान न दिखी। .. मरता क्या न करता ,बाइक हाथ  से घसीटने लगा |
पीठ पर लेपटॉप का बेग और हेंडल पर टिफिन लटकाये हुए हेलमेट भी निकालना पड़ा, किसी तरह एक डेढ़ किलोमीटर के बाद एक मेकेनिक की दूकान सड़क के उस पार खुली दिखी, तुरंत सड़क पार करने लगा, पर तभी हेलमेट हाथ से छूट गया। ..सोचा बाइक रखकर उठा लेगा। .. दूकान के सामने पहुंच कर बाइक खड़ी की, और पलट कर हेलमेट उठाने आया। .....

अभी हेलमेट उठाकर पलटा भी न था, कि पीछे से एक लड़का दौड़कर आते हुए उसे मारने लगा। ..उसे कुछ समझ आता उससे पहले ही उसने ५-६ घूंसे  मुँह पर दे मारे। ..वह इस अचानक हुए हमले से असंतुलित होकर सड़क पर गिर पड़ा ,चश्मा आँखों से और टिफिन हाथ से छिटक कर दूर जा गिरा, नाक से खून बहने लगा उसकी , वो तो भला हुआ कि पास से गुजरती कार से टकराने से बच गया। .. उसने तुरंत चश्मा खोजकर एक हाथ में कसकर पकड़ लिया , जानता था-उसके बिना कुछ भी देख नहीं सकेगा। ..

साथ ही वो बचाव में पूछने लगा -अरे भाई ! हुआ क्या ? क्यों मार रहे हो? लेकिन तभी उस हमलावर के दो साथी और आ गए और ये बोलते हुए कि -बाईक कैसे खड़ी की  .. तीनों मिलकर मारने लगे। ....रात में सड़क पर आवागमन कम था , मेकेनिक की दूकान से दो लड़कों ने आकर उसे छुड़ाया , वो उठा , अपना टिफिन उठाया देखा ढक्कन टूट चुका था , हेलमेट ठीक था ,थोड़ा संभलकर अपनी बाइक तक गया देखा उसकी बाईक के बाजू में उस लडके की बाईक खड़ी थी ,लेकिन टकराई तो नहीं ही थी ,फिर कहा - कुछ भी तो नहीं हुआ आपकी बाईक को,लेकिन वे सुनने वालों में से नहीं थे फिर उसे मारने लगे , वो असहाय था ,अकेला , उसने वहाँ रुकना ठीक  न समझा , एक बार को लगा कि १०० नंबर पर कॉल करे ,लेकिन खुद को संयत रखते हुए ऐसा नहीं किया, क्यों कि लड़कों ने उसे सिर्फ मारा था ,पर्स मोबाईल छीना नहीं था,हो सकता था वे ऐसा करते देख और हानि पहुंचाते ,उसे माँ और पत्नी का भी ख़याल आया कि वे रास्ता देख रहे होंगे ,  और उसी हालत में टूटा टिफिन और हेलमेट पकड़ बाईक घिसटते हुए आगे बढ़ गया...

रास्ते में कोई दूकान खुली नहीं दिखी न कोई मेकेनिक मिला, आखिर फिर ३-४ किलोमीटर पर एक मेकेनिक की दूकान दिखी लेकिन वो बंद थी ,वो बाईक वही  खड़ी कर दूकान के बोर्ड में देख मोबाईल पर मेकेनिक का नंबर ट्राय करने लगा ,बार -बार ऐसा करते पास की एक कबाब की दूकान बंद कर जाने वाले तीन लड़कों ने उसे देखा उसमें से एक ने आकर कहा- वो नहीं मिलेगा अभी और सारी बात जानकर उसकी हालत देख ,बाईक वही खड़ी करवा ली ।  अब तक वो थककर चूर हो चुका था, नाक से रह -रह कर खून भी आ ही रहा था , उसने वहीं से ओला कैब बुक की लेकिन कैब के पहुंचने तक उसकी हालत उसके बर्दाश्त से बाहर हो चुकी थी वो वही सड़क पर लेट गया कैब का इंतज़ार करने , और इसी वक्त उसे खुद से बात करने का मौका मिला,  मन उस पर भारी हो गया, पिता बहुत याद आये  .रोना भी आया ..

७ साल की उम्र से खुद से जूझ रहा है , किसी को बताता नहीं, लेकिन माँ जानती है,  और माँ को याद करते ही उसमें ऊर्जा आ गई ,तभी कैब वाला पहुँच गया , उसे सड़क पर लेटे  देखकर कैब ड्राइवर उतर कर उसके पास आया ,उससे पूछा क्या हुआ? और उसकी सारी बात सुनकर और ये जानकर कि माँ और पत्नी घर इंतज़ार कर रहे हैं, उसके दुख का सहभागी बना , ड्राईवर ने उसे उठाकर कैब में बैठाया , उसका सामान रखा ,उससे बोला- सर प्लीज आप राइड केंसल कर दीजिये , मैं आपको घर तक पहुंचा दूंगा , मेरा दिन भर का राइड हो चुका है ,मैं आपसे पैसे नहीं लूंगा , . और राइड केंसल करवा दी । उसने कुछ देर में पानी का पूछा और अपने पास देखा ,लेकिन उसकी बोतल में पानी ख़तम हो चुका था , बोला - सर मैं आगे कोई दूकान खुली होगी तो रोकूंगा आप पानी ले लीजियेगा , एक शराब दूकान देखकर कैब रोकी उससे पानी की बोतल खरीदवाई  और आकर फिर कैब में बैठ गया  ....रास्ते में बात करते हुए कहने लगा- सर कितनी बुरी बात है , आप यहां काम करने के लिए आये हैं और यहां के लोगों ने आपके साथ इतना गलत व्यवहार किया । ड्राईवर की बात सुन दर्द में भी एक पल को उसके होठों पर मुस्कराहट तैर गई। ...

. तब तक करीब साढ़े बारह बज चुके थे  उसके फोन की घंटी बजी , ड्राईवर ने पहले ही आगाह किया- घर से फोन होगा तो अभी मत बताईयेगा सर ,माँ और आपकी पत्नी परेशान हो जाएंगे , उसने फोन उठाया ,माँ  का फोन था, उसने वैसा ही किया,माँ से कहा - रास्ते में हूँ , १०-१५ मिनट और लगेंगे। ...

... और कुछ देर में ड्राईवर ने उसे सुरक्षित पहुंचा दिया। .. उसके लाख कहने पर भी पैसे नहीं लिए शायद २५०/- होते इतनी दूर के। .. बस प्रेम भरा धन्यवाद लिया और लौट गया। ...

घर पर माँ घड़ी देखते-देखते  लेट चुकी थी,पत्नी खाने पर इंतज़ार करते -करते झपकी ले रही थी , तुरंत दो थाली लगाई और साथ खाने पर बैठते ही उसकी रूलाई फूट पडी , माँ  भी कच्ची नींद में थी , कुछ आशंका से भयभीत हो उठ बैठी और तब उसने दोनों को ये सारी घटना बताई।

तीनों के अश्रु झर रहे थे। .. और कुछ कहते न बन रहा था सिर्फ उस कैब वाले को मन ही मन धन्यवाद दे रहे थे और आपस में एक ही बात कह रहे थे  - इससे भी बुरा हो सकता था। . .
जाने कितना बुरा।

और माँ ने गले लगाते हुए हमेशा की तरह यही कहा -बीती ताही बिसार दे!

3 comments:

Shashi said...

Nice .

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’घबराएँ नहीं, बंद नोटों की चाबुक आपके लिए नहीं - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

kavita verma said...

duniya me bure log hai to bhale log bhi hain ...beeti tahi bisar de ..