Wednesday, May 31, 2017

इक तो सजन मेरे पास नहीं रे - गौतम राजऋषि की कहानी का पॉडकास्ट

गौतम राजऋषि किसी परिचय के मोहताज नहीं। ... 

उनके ब्लॉग -पाल ले एक रोग नादाँ से एक कहानी का पॉडकास्ट बड़ी मेहनत के बाद बना पाई हूँ ,.. तकनीकी जानकारी न के बराबर ही है , जो सीखा यहीं ब्लॉग पर सीखा , ..... गलतियां संभव हैं। .. आशा है उन्हें अनदेखा करेंगे। ... 

 सुनियेगा। .. कहानी बहुत बड़ी है। ..प्रयास किया है हर पात्र को आप महसूस करें ,मैं इसमें कितना सफल हुई ये आपकी प्रतिक्रया ही बताएंगी। .. 

कहानी का समय है ४४मिनट १७ सेकण्ड और 
शीर्षक है - इक तो सजन मेरे पास नहीं रे ...  

(कहानी मासिक हंस के नवंबर 2012 अंक में प्रकाशित  हो चुकी है ) 

(अगर सुन न पा रहे हों -प्लेयर को एक बार सक्रीय करें फिर दुबारा प्ले करें )






Sunday, May 28, 2017

चाहिए मानहानि हर्जाने के हिसाब के लिए योग्य नेताजी


बचपन में दादी से कहानी सुनाने को कहते तो उनकी शुरुआत होती -एक राजा था ,वो बड़ा अच्छा था, उसकी प्रजा भी राजा का बहुत मान करती थी ,और हमारा प्रश्न खड़ा हो जाता - क्या करती थी? दादी कहती - मान, और हमारे पल्ले कुछ न पड़ता तब एक ही चारा बचता या तो राजा की कहानी सुन लो या मान को जान लो,और हम राजा की कहानी चुनते मुंह पर उंगली रखकर ,तो मान कभी समझ नहीं आया ,
उन्हीं दिनों जोशी मास्साब हम सब भाई बहनों को गणित पढ़ाने आया करते थे वे समझाते लाभहानि, हमें लाभ मतलब फायदा और हानि मतलब नुकसान समझ आया तो मान का नुकसान उठाते रहे तो मानहानि वही समझा।
जब थोड़ी बड़ी हुई तो लड़की होने के चलते पहले पिता और फिर पूरे परिवार और समाज के मान के बोझ को कंधें पर टिका पाया पर कभी मान को गिरने न दिया ।

मान की हानि पर हर्जाना भी मिलता है, आज समझ आने लगा ,अखबारों में नेताओं के अड़ी-सड़ी बातों पर मानहानि के दावे ठोकने की खबरें देख -देख कर (पढ़कर समय बर्बाद होगा उसका हर्जाना कौन देगा )सो ...

सोचती हूं बचपन से अब तक हुए मेरे मान की हानि के हर्जाने का हिसाब लगाने का काम करवा लूँ किसी अच्छे सी ए को खोज कर, बिना पूछे  लड़कियों के काँधे पर घर-परिवार ,समाज ,गांव,तक के मान के रखवाली का जिम्मा जबरन थोपने के लिए …... सी ए से बेहतर कोई नेता ही हायर क्यों न कर लूं हजार नहीं तो सौ नहीं तो दस करोड़ तो मिल ही सकते हैं, क्या ख़याल है ?

Sunday, May 21, 2017

"बिना शीर्ष का -ऑन ड्यूटी"


-साब नमस्ते
-हम्म
-साब जी नमस्ते
-कहा न,हम्म
-जी साबजी
-नाम ?
-मालूम नही
-हें? कहाँ से आया?
-सरसती देस के जुगलबंदी सहर से
-कैसे?
-कलम रस्ते..
-तो,कोई नाम तो होगा न?
-जी मां व्यंग्य बुलाती है
-और बाप?
-नहीं है
-नहीं है? मतलब?
-मतलब इस बार नहीं है
-अबे! बाप तो सबका होता है,हमेशा होता है, तेरा इस बार नहीं हैं,कह रहा है? किसको मूर्ख बनाना चाहता है?सेरोगेसी में भी मां का पता नहीं होता,बाप तो होता ही होता है।
-जी
-फिर?
-मेरा इस बार नहीं है,
-कैसे?
-जुगलबंदी के शहंशाह ने कलम कर दिया सिर ,कहा इस बार बिना सिर के रहो...अपनी दुम के बल पर ....
-पर भला ऐसा क्यों?
- उनका मानना है व्यंगों की जमात के सिर चुनकर लोग उस पर ताज रखते हैं फिर उसका शीर्ष कभी भी, कहीं भी किसी भी तरह इस्तेमाल करने लगते हैं, जबकि मोलभाव पिछलग्गी दुमों का किया धरा होता है👍
-ओह!बात तो सई कही,अब ये बता मेरे पास क्यों आया?
-इस बार भी छपना है,साबजी ! "बिना शीर्षक"
-उससे क्या होगा?
-साबजी दुम के भाव बढ़ेंगे,जुगलबंदी शहर के शहंशाह सरसती देस में नाम कमाएंगे ....
-और ?
-और लोग जान जाएंगे कि व्यंग्य भी "बिना शीर्ष के" जिंदा रहकर यानि छपकर ताज वालों  में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकता है ।
-शाबास!
-तो हाँ समझूं साबजी
-अरे हाँ, बिंदास जा और फेसबुक वॉल पे ड्यूटी संभाल...."बिना शीर्ष के"
-

Sunday, May 14, 2017

टेलिफोन की याद में

वो काला फोन जिसके डायल में गड्ढे होते थे,उंगली फँसा कर नंबर घुमाना खूब याद आता है,बात करते करते ये एक आवश्यक कार्य हो जाता था कि उस पर जमी धूल झाड़ते चलो ।
जब पहली बार फोन नामक यंत्र का घर आगमन हुआ तो जैसे पंख निकल आये थे हमारे ,खुद को जमीन से थोड़ा ऊपर ही महसूस करते थे।उसे पिताजी के ऑफिस में दाहिने कोने पर सजा दिया गया था एक लंबे तार के साथ जो आये दिन हम बच्चों के पैर पकड़ लेता था, और जब उसकी घंटी बजती ट्रिंग...ट्रिंग... तो हम भाई बहनों में रेस लग जाती कौन पहले उसे उठाएगा ,दौड़ के कई इनाम उसी प्रेक्टिस का नतीजा रहे ।
जितनी खुशी उसके आने से हुई, उतनी ही नफरत उससे तब होती जब दौड़कर पहले पहुंच कर उठाने पर उधर से आवाज आती - जरा अलाने के घर से फलाने को बुला देना , फोन चालू रखकर उनके घर तक दौड़ लगाते वे आते तब तक फोन कट जाता, धीरे धीरे समझ आने लगी बेवकूफी,तब आधे रास्ते से लौटकर कह देते अभी वे घर नहीं,झूठ बोलने की शुरूआत यहीं से हुई  थी ...😊
और जब किसी अपने से दूसरे शहर बात करते तो नंबर बुक करना होता ,कभी कभी तो बिचौलिया जी भूल ही जाते कि किसी को कनेक्ट करने है ।
आज भी तीन अंको का नंबर याद है 163 ,कितना आसान होता था याद रखना ,और अब ये 10 डिजिट ..याद नही रहती रे बाबा और ये मोबाइल ने स्मरणशक्ति का सत्यानाश कर दिया वो अलग, सब खुद ही याद रख लेता है ,किसी को बिना बोले संदेश भेज भेज कर  बदला लिया जा सकता है उसकी रिंगटोन ऐसे बजती है टुई टुई जैसे कोई सुई चुभा रहा हो बीच में , अब दिमाग के साथ हाथ और आंखों पर भी कब्जा जमा लिया इसने ...
कैशलेस आदमी का मोबाईललेस  होना वैसे ही जरूरी हो गया है
मुझे तो चिंता आने वाली पीढ़ी की लगी है ,अनुकूलन के गुण के कारण जब मनुष्यों की प्रजाति की गर्दन एक तरफ से झुकी हुई हो जाएगी .....अंगूठे कोई भी वस्तु को पकड़ने से मना कर देंगे ...
सारे कपड़ों के डिजाईन चेंज होंगे ,लोग कानों से बहरे तो हो ही चुके हैं हेडफोन से ...
खैर! अपडेट रहना भी जरूरी हो गया है सो हमने भी मोबाईल पाल लिया ,लेकिन ये इतने चिकने क्यों आते हैं समझ से परे हैं ,अब तक कोई हाथ से छूट के गिर गया तो किसी को बचाते बचाते भी स्क्रीन चकनाचूर हो गई इस हफ्ते ही ये पहुंचे बीमा स्कीम में नया चेहरा बनवा कर तो  लिख दे रही हूँ ,इनकी याद में ....


Friday, May 12, 2017

ब्लॉग एक कली दो पत्तियाँ से एक पॉडकास्ट

आज ब्लॉग बुलेटिन की लिंक्स पढ़ते हुए जा पहुंची दीपिका रानी के ब्लॉग -

एक कली दो पत्तियाँ पर

सुनिए इनके ब्लॉग से पढ़ी गई दो रचनाएं  मेरी आवाज में -- पसंद आये तो उनके ब्लॉग पर जाकर सराहें






Tuesday, May 9, 2017

चार शब्दों का खेल

एक गेम खेलते हैं - चार शब्द दे रही हूँ -

४ या ६  लाईन लिखनी है जिसमें ये चारों शब्द आने चाहिए -- शब्द हैं - 


घोड़ा/ मूंछ / सपना /फूल 

एक सदस्य ३ एंट्री दे सकता है। ..  


पिछले सप्ताह ये खेल ग्रुप- " गाओ गुनगुनाओ शौक से" में खेला गया और नतीजा आपके सामने है - और इसमें से कुछ को बाकायदा धुन बनाकर सस्वर  गाया भी गया -




 रश्मिप्रभा-
१.

घोड़े की मूंछ नहीं है
लेकिन उसका एक सपना है
फूल भरी वादियों में जाके उसको दौड़ना है

२.

घोड़े ने देखा सपना
पूंछ में लगाके फूल
घोड़े ने देखा सपना
जाऊँगा सिंड्रेला के पास
उसको दूँगा फूल
फिर कैसे जाएगी वो भूल

३.

घोड़े ने ऐंठी मूंछ
और देखा एक सपना
फूलों के गांव से आया कोई अपना
आया कोई अपना
सुंदर सलोना सपना


अर्चना -

१.

घोड़े पर चढ़ आया सवार
नाम था उसका फूलकुमार
घोड़े  ने जब फटकारी पूँछ
गिरा सवार और  कट गई मूंछ
पास न था कोई उसका अपना
देखा था उसने दिन में सपना


अबे! ओ मूँछों वाले
देखी है अपनी मूँछ
मुझे तो लगती है
ये घोड़े की पूँछ
कह भी मत बैठना
"यू आर सो कूल"
सपने में भी लाया फूल
तो चाटेगा यहाँ धूल ...


सपने में देखा एक राजकुमार
मूँछें थी काली और घोड़े पे सवार
आंखों ही आँखों में उससे हो गया प्यार
फ़िर पहनाया उसने मुझको फूलों का हार


शिखा-

१.

घोड़े की जो पूंछ न हो
मर्द की जो मूंछ न हो
सपने में जो फूल न हो
तो....ये जीना भी कोई जीना है लल्लू।



तुझमें मुझमें है फर्क बड़ा
तू घोड़ा है मैं आलसी मौड़ा हूँ
तू फूल सी पूंछ दबा के दौड़ता है
मैं मूंछ लगा के सपना देखता हूँ। 😁😁




जो आदमी की पूंछ होती
वो भी फूल लगाता
मूंछ वाला देखे यह सपना
काश वो भी घोड़ा बन जाता।


रागिनी मिश्रा 

मूंछ होगी तो पटा लूंगी 😘
पूंछ होगी तो कटा दूंगी 😂
सपना है मेरा ऐसा 🤗
तुझपे हर फूल लुटा दूंगी 🍥



बनकर घोड़ा दौडूं सरपट
विद्यालय को पहुंचूं झटपट
पर घोड़े की मूंछ नहीं है
फिर मेरे भी तो पूंछ नहीं है
सिर पर मेरे फूल लगे हैं
देखो कितना कूल लगे है
बन्दर जैसा चेहरा अपना
हाय दइया... ये कैसा सपना?



दैय्या रे दैय्या रे चुभ गयी उनकी मुछवा 🤓
लाओ रे  लाओ कोई लगाओ ऊपे फुलवा 😁
आके वो चढ़ गया जैसे चढि गये घोड़वा 😂

हाय हाय रे मर गयी कोई उखाड़े ऊकी पुंछवा ☺
चुभ गयी निगोड़ी मुछवा मुछवा 
लाओ रे लाओ रे कोई बिछाओ ऊपे फुलवा


वन्दना अवस्थी दूबे 



फूलों के बीच घूमते,
सपना देख रहा था घोड़ा,
काश उग सकें उसकी भी
मूंछें अब थोड़ा-थोड़ा



घोड़ा आया दौड़ के, अपनी पूंछ दबाय,
खड़ा है दूल्हा कब से अपनी मूंछ खुजाय
फूल सी दुल्हन बैठी है, नैनों में ख़्वाब सजाय!



घोड़े की पूंछ
दूल्हे की मूंछ
फूल हैं सच्चे
सपना है झूँठ


 उषा किरण 



राजकुमार की मूँछ हो या हो घोड़े की पूँछ।                    
रजनीगंधा के फूल हों या अपने देस की धूल                          
 सपना तो फिर सपना है। चाहें किसी से पूँछ
                           


मूँछों की लड़ाई
हमको ना भाई
घोड़े सी दुलत्ती
क्यूँ तुमने लगाई
मान सपना सा भूल
दे दो उसको फूल



घोड़े के मूँछ
फूलों की पूँछ
 सपनों की महिमा
 हम से ना पूँछ


गिरिजा कुलश्रेष्ठ 

 १

मैंने एक सपना देखा .
घोड़ा यों अपना देखा .
उसकी उग आई थीं मूँछ ,
पर गायब थी उसकी पूँछ ।।    


मेरा घोड़ा बड़ा निगोड़ा .
पूँछ उठाकर जब भी दौड़ा .
खुद को समझे राजकुमार,
पहनादो फूलों का हार .
सपने देखे बड़े बड़े .
सो लेता है खड़े खड़े .



पूले सी मूँछ हो ,
लम्बी सी पूँछ हो .
ऐसा एक घोड़ा हो .
नखरैला थोड़ा हो .
फूलों का बँगला हो .
पूरा ये सपना हो ।



पूजा अनिल 

१)

घोड़ा दौड़ा
मूंछ था मोड़ा
फूल पे फिसला
सपने में पगला

२)

फूल रंगीला
घोड़ा नीला
मूँछ को खोजे
सपना हठीला

३)

किसका घोड़ा
सरपट दौड़ा ?
कैसा सपना
तुमने देखा ?
मोर की पूँछ ?
दादा की मूँछ ?
बाग़ का फूल ?
गुलाब का शूल?
सब गये भूल !
हम गये भूल!


 संध्या शर्मा



घोड़ा शोभे न पूँछ बिना
धणी शोभे न मूँछ बिना
सपना नही अपनों बिना
बाग़ न सोहे फ़ूल बिना



घोड़ा आया बाग़ में
फूल कोई खिला गया
सपनों की गली थी
मूँछ वाला जगा गया



ए सनम जिसने ये शानदार सी मूँछ दी है
उसी मालिक ने ही तो घोड़े को पूँछ दी है
चाहे बिखरे हो कितने फ़ूल घोड़ा दौड़ेगा
सपने में भी ये मूँछवाला साथ न छोड़ेगा



शीतल माहेश्वरी 



घोडा करना चाहता था
फूल सी राजकुमारी से शादी
मगर क्या करे वो बेचारा
मूंछ ने कर दी उसके सपनो की बर्बादी



घोड़ा बना सपना
पूंछ उसकी नींद
मूंछ सी काली रात में
कर रहे दोनों तक धिना धिन
इतने में चली होले से हवा
फूल सा महका समा हसीन



ऋताशेखर 



बाबा जी ने मूंछ उमेठी
घोडा ने फटकारी पूँछ
दूर देश में खड़ा था माली
उसने खूब खिलाये फूल
सपनो में देखो जब सपनी
सारी बातें लगती अपनी



शोभना चौरे 



पूंछ हिलाता आया घोड़ा
उसपे बैठा
मूंछो वाला राजकुमार
राजकुमारी के सपने
हुए साकार
दोनों ने
एक दूसरे
को पहनाए फूलो के हार


वाणी गीत 


घोड़ा चढ़ के आया जो
सपने में आया वो
मूँछ तो थी उसकी काली
पर फूल लाया गुलाबी

Sunday, May 7, 2017

निंदक नियर रखने को करें -कड़ी निंदा

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय 
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय... 

जन्म हुआ तबसे सुनते आये हैं। ... अब रच बस गया है भारतीयों के मन में। ... अब निंदकों को नियर रखना हो तो निंदा तो करते रहना पड़ेगी वरना निंदक मिलेंगे कहाँ से। .. सबको अपनी कुटी की फिकर करने का हक़ तो है ही। ....तो भाईयों ,बहनों, मितरों कुछ भी कहा जाए , मुख्य बात निंदा करने की रहती है और जब कड़ी निंदा हो तो फिर तो सोने पे सुहागा।  ....  

हर भारतीय का भाई-चारा बनाये रखने का जन्मजात स्वभाव होता है , यहां की मिलनसारिता के किस्से इतिहास के पन्नों को भरते आये हैं। ... देश आजाद होने से पहले भी और बाद में भी। ... 
मुफ्त में जो मिले लपक लेने में भारतीयों का नाम गिनीज बूक में होना चाहिए। .... इसलिए जहां  बिना -साबुन और पानी के सिर्फ निर्मल करने की बात हो तो बाबा के साबुन को भी कोई  न पूछे। .... 


हर व्यक्ति अलग-अलग निंदा करे ये शोभा नहीं देता और कारण तो ये है की देश की आधी आबादी से भी ज्यादा रोटी-पानी के जुगाड़ में निंदा करने का समय ही नहीं निकाल पाती  ,इसलिए समूह में एक चुने हुए सदस्य द्वारा निंदा का प्रचलन हो गया   है अब। .. 

सुई बराबर भी मौका मिले तो निंदा करने झपट पड़ते हैं लोग। ... जो अपने अपने समूह से चुने गए हैं। ...

इस बार ब्लॉगरी समूह की जुगलबंदी में कड़ी निंदा की जानी है। ...सो इस मौके का फ़ायदा कौन न उठाएंगे। ... 
मैं भी कर देती हूँ कड़ी निंदा। .. कड़क चाय से भी कड़ी - मेरे निंदनीय लोग मेरे आस-पास रहें और मेरी कुटी के आँगन की शोभा ... डे तो क्या नाईट में भी मेरे सुभाव को निर्मल रखे। ...


Saturday, May 6, 2017

स्वच्छता अभियान - इंदौर पहला स्थान















बधाई सारे इंदौरियों  को। .. 


 अपने लिए गर्व का पल जुटा लिया उन्होंने ,सच में बहुत मेहनत की इंदौरियों ने , अपनी आदतों में बदलाव लाना इतना आसान भी नहीं होता। ...

 इंदौर खाना-पसंद लोगों का शहर ... जहां खाने के इतने शौकीन लोग हैं कि हर गली के बाहर पोहा-जलेबी और और पानीपूरी के ठेले आपको मिल जाएंगे ..., जहां आप २४ घंटे में किसी भी समय भूख लगे तो इंदौर के दिल राजबाड़ा की तरफ निकल सकते हैं , ये तय है की आपको भूखे नहीं रहना पडेगा। .
कल तक अखबार के टुकड़े , दोने , डिस्पोज़ल प्लास्टिक की पन्नी। .सब कुछ सड़क पर उड़ा दिया जाता था। .







.
लेकिन जैसे ही सफाई अभियान की घोषणा हुई। .. चमत्कार से काम नहीं हुआ कि सारे के सारे इंदौर वासी एक हो गए। ...बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब पर एक ही धुन सवार हो गई ---- क्लीन इंदौर -ग्रीन इंदौर। .. 




इसके लिए नगरनिगम ने सराहनीय प्रयास किये। ... सबसे आकर्षक नै नवेली कचरा गाड़ियों का गीत गाते हुए सुबह-दोपहर-शाम सड़को पर घूमना लगता है..


कैलाश खेर और शान के गाये गीत बच्चे -बच्चे की जुबान पर चढ़ गए-



 -- अब हमने मन में ठाना है। ... इंदौर को स्वच्छ बनाना है। .. गाते हुए "मायरा" भी दौड़ पड़ती है घर के अंदर। .- नानी कचरा गाडी आ गई। ...जल्दी चलो। ..चली जायेगी 










 ये कुछ वीडियो जुटाए हैं मैंने सोशल साईट यूं ट्यूब से। ....जो बताते हैं कितना उत्साह है इंदौर वासियों में। . 

ये सच है की मिलकर प्रयास किये जाए तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है - अस अभियान को इतने जोर-शोर से चलाये जाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री की मैं आभारी हूँ। .. हो तो बहुत पहले ही सकता था ,मगर पहल करना अपने आप में महत्वपूर्ण है 

सहयोग करते हुए मैंने इंदौर वासियों को देखा है - जब वे कचरा गाड़ी के सफाई कर्मचारियों को ठंडा पानी पिलाते हैं या खाना देते हैं खाने के समय। ... सारे सफाई कर्मचारियों का बर्ताव तारीफे-काबिल रहा है अब तक। ... बुजुर्गों से ,बच्चों से लेकर खुद ही कचरा गाड़ी में डालते हैं। ... 

.. और अंत में एक विशेष बात जो सराहनीय है -
इन कचरागाडियों की महिला ड्राईवर।जिन्हें इस काम पर रखा गया। ... उनका आत्मविश्वास देखते ही बनाता है जब वे ये मिनी गाड़ियां चलाती है 

एक प्रयास आप भी करें आपके अपने शहर को साफ़ रखने के लिए। ... 

अपनी भावी पीढ़ी को एक नया देश सौंपेंगे हम इसी आशा के साथ सभी को शुभकामनाएं 

विस्तृत जानकारी यहां है -








Friday, May 5, 2017

सुनिए दिलीप की लिखी एक कविता-"दो पातीयां"

२०१० में ये पॉडकास्ट ब्लॉग पर पोस्ट किया था , कुछ तकनीकी कारणों से पुराने पॉडकास्ट सुने नहीं जा पा रहे थे। ... आज ये रिकार्डिंग मिल गई , फिर से प्रयास किया है सुनवाने का -


इस कविता को आप यहाँ पढ सकते हैं............दिल की कलम से ....

ब्लॉग है दिलीप का -



बेटी और माँ का एक संवाद............पत्र के माध्यम से......






Wednesday, May 3, 2017

चढ़ता सूरज धीरे-धीरे


"गाओ गुनगुनाओ शौक से" एक ग्रुप क्या बनाया   ... संगम हो गया गीतों,ग़ज़लों,कव्वालियों  का , आज गिरिजा दी को गेस्ट एडमिन बनाया और उन्होंने थीम दी - गैर फिल्मी भजन, ग़ज़ल, स्तुति

और एक से बढकर एक भजन ग़ज़ल सुनाई गई। ... हालांकि कव्वाली के बारे में स्पष्ट नहीं था गा  सकते हैं या नहीं। ..

फिर भी ये कोशिश की... पसंदीदा कव्वाली। ... एक समय था जब इसकी गूँज थी। अज़ीज नाज़ा की आवाज में

 ... आज भी दिल पर राज करती है ये कव्वाली - आप भी सुनिए - (ध्यान रहे मैं कोई गायिका नहीं हूँ )




अच्छे मित्रों की बात मान लेनी चाहिए !

बात किसी स्वाधीनता दिवस की है -
उस दिन मेरे स्कूल के बच्चों का ग्रुप देशभक्ति गीत प्रतियोगिता में हिस्सा लेने मेरे स्कूल के संगीत शिक्षक के साथ जाने वाला था ,एक शिक्षिका भी साथ थी पर ग्रुप  के साथ मेरी भी ड्यूटी थी। ..हम लोग पहुँचे प्रतियोगिता स्थल पर। ..
संगीत शिक्षक गाड़ी से सामान उतरवा रहे थे , शिक्षिका और मैं बच्चों को लेकर अंदर चले गए हॉल में प्रवेश करते ही बच्चों ने बताया कि स्टेज के पास टेबल लगाकर जो सर बैठे हैं , उनके पास एंट्री करवानी है

मैं फार्म लेकर चली गई , एक मोटा सा व्यक्ति आँखों पर चश्मा चढ़ाए बैठा था लिस्ट बनाने के लिए , मैंने  जाकर कहा- सर,  नाम लिख लीजिये ,उसने सर उठाकर एक नज़र भर देखा और कहा- नाम बताईये कौनसा स्कूल ?
मैंने स्कूल का नाम बताया
थोड़ा अजीब नाम था , उसने गर्दन उठाकर फिर मेरी और देखा, मैंने फिर से नाम दोहरा दिया
वे बोले- शिक्षक का नाम ?
मैनें संगीत शिक्षक का नाम बता दिया
वे फिर बोले - दो टीचर हैं क्या ?
मैनें कहा- जी, और साथ आई शिक्षिका का नाम भी बता दिया
उन्होंने फिर पूछा- आप( साथ वाली शिक्षिका का नाम लेकर) हैं ?
मैंने "ना" में जबाब दिया
वे बोले -फिर?
मैंने आगे बताया- मैं स्पोर्ट्स टीचर हूँ बच्चे ज्यादा हैं ,तो साथ आई हूँ
उन्होंने मेरा नाम पूछा ,मैंने अपना नाम बताया-अर्चना ,
 उनकी जिज्ञासा शांत होने का नाम न ले रही थी,अगला प्रश्न था- सरनेम? (वैसे भी अधिकतर गलत लिखते हैं, तो मैं बताती नहीं) मैंने "चावजी" कहा
इस पर भी वे चुप न रहे ,पूछा- आप खरगोन से हैं? , अब मैं अचरज में थी , मैंने कहा- जी, वे बोले शादी से पहले आप पाठक थी? मैंने कहा- हाँ,
उनके चहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक आ गई , वे इसी उत्तर की तलाश में सवाल पर सवाल किए जा रहे थे |
फटाक से अपनी सीट से खड़े होते हुए बोले- मुझे पहचाना? मैं यश ,यश शर्मा ,नूतन नगर.... हम लोग एक ही क्लास में थे

......... और हाँ मुझे सब याद आ गया था , हम उसे मोटा होने से पहचानते थे , और ये वही यश था -जिसने एक बार रेडियो नाटक के लिए लड़की की आवाज देने के लिए मुझसे कहा था ,और मैंने मना कर दिया था ,खूब मनाने की कोशिश भी की थी पर मैंने साफ़ मना कर दिया था  ... बाद में मेरी सहेली ने आवाज दी थी |

कॉलेज के बाद मेरी शादी हो गई थी .. और आज  करीब २० साल बाद हम फिर आमने-सामने थे। ..उसने मुझे पहचान लिया था , इस बीच बहुत -कुछ घट गया था मेरे जीवन में। ... उसे मेरे बारे में जानकर बहुत दुख हुआ , मध्यांतर में वो पत्नी और बच्चों को मुझसे मिलवाने के लिए लेकर आया। .....

अब इस बात को भी करीब १२ साल हो चुके हैं।

..... .और आज इतने साल बाद फिर पॉडकास्ट बनाते हुए उसकी याद आ गई कि मेरी आवाज सूनी भी जा सकती है ये "यश" को सबसे पहले आभास हो गया था। ....

अच्छे मित्रों की बात मान लेनी चाहिए !

"सुबह-सबेरे"अखबार में पढ़ने के लिए लिंक - 
http://epaper.subahsavere.news/c/18776135