बचपन में दादी से कहानी सुनाने को कहते तो उनकी शुरुआत होती -एक राजा था ,वो बड़ा अच्छा था, उसकी प्रजा भी राजा का बहुत मान करती थी ,और हमारा प्रश्न खड़ा हो जाता - क्या करती थी? दादी कहती - मान, और हमारे पल्ले कुछ न पड़ता तब एक ही चारा बचता या तो राजा की कहानी सुन लो या मान को जान लो,और हम राजा की कहानी चुनते मुंह पर उंगली रखकर ,तो मान कभी समझ नहीं आया ,
उन्हीं दिनों जोशी मास्साब हम सब भाई बहनों को गणित पढ़ाने आया करते थे वे समझाते लाभहानि, हमें लाभ मतलब फायदा और हानि मतलब नुकसान समझ आया तो मान का नुकसान उठाते रहे तो मानहानि वही समझा।
जब थोड़ी बड़ी हुई तो लड़की होने के चलते पहले पिता और फिर पूरे परिवार और समाज के मान के बोझ को कंधें पर टिका पाया पर कभी मान को गिरने न दिया ।
मान की हानि पर हर्जाना भी मिलता है, आज समझ आने लगा ,अखबारों में नेताओं के अड़ी-सड़ी बातों पर मानहानि के दावे ठोकने की खबरें देख -देख कर (पढ़कर समय बर्बाद होगा उसका हर्जाना कौन देगा )सो ...
सोचती हूं बचपन से अब तक हुए मेरे मान की हानि के हर्जाने का हिसाब लगाने का काम करवा लूँ किसी अच्छे सी ए को खोज कर, बिना पूछे लड़कियों के काँधे पर घर-परिवार ,समाज ,गांव,तक के मान के रखवाली का जिम्मा जबरन थोपने के लिए …... सी ए से बेहतर कोई नेता ही हायर क्यों न कर लूं हजार नहीं तो सौ नहीं तो दस करोड़ तो मिल ही सकते हैं, क्या ख़याल है ?
2 comments:
सटीक...बहुत सही!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-05-2017) को
"मानहानि कि अपमान में इजाफा" (चर्चा अंक-2636)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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