Sunday, May 14, 2017

टेलिफोन की याद में

वो काला फोन जिसके डायल में गड्ढे होते थे,उंगली फँसा कर नंबर घुमाना खूब याद आता है,बात करते करते ये एक आवश्यक कार्य हो जाता था कि उस पर जमी धूल झाड़ते चलो ।
जब पहली बार फोन नामक यंत्र का घर आगमन हुआ तो जैसे पंख निकल आये थे हमारे ,खुद को जमीन से थोड़ा ऊपर ही महसूस करते थे।उसे पिताजी के ऑफिस में दाहिने कोने पर सजा दिया गया था एक लंबे तार के साथ जो आये दिन हम बच्चों के पैर पकड़ लेता था, और जब उसकी घंटी बजती ट्रिंग...ट्रिंग... तो हम भाई बहनों में रेस लग जाती कौन पहले उसे उठाएगा ,दौड़ के कई इनाम उसी प्रेक्टिस का नतीजा रहे ।
जितनी खुशी उसके आने से हुई, उतनी ही नफरत उससे तब होती जब दौड़कर पहले पहुंच कर उठाने पर उधर से आवाज आती - जरा अलाने के घर से फलाने को बुला देना , फोन चालू रखकर उनके घर तक दौड़ लगाते वे आते तब तक फोन कट जाता, धीरे धीरे समझ आने लगी बेवकूफी,तब आधे रास्ते से लौटकर कह देते अभी वे घर नहीं,झूठ बोलने की शुरूआत यहीं से हुई  थी ...😊
और जब किसी अपने से दूसरे शहर बात करते तो नंबर बुक करना होता ,कभी कभी तो बिचौलिया जी भूल ही जाते कि किसी को कनेक्ट करने है ।
आज भी तीन अंको का नंबर याद है 163 ,कितना आसान होता था याद रखना ,और अब ये 10 डिजिट ..याद नही रहती रे बाबा और ये मोबाइल ने स्मरणशक्ति का सत्यानाश कर दिया वो अलग, सब खुद ही याद रख लेता है ,किसी को बिना बोले संदेश भेज भेज कर  बदला लिया जा सकता है उसकी रिंगटोन ऐसे बजती है टुई टुई जैसे कोई सुई चुभा रहा हो बीच में , अब दिमाग के साथ हाथ और आंखों पर भी कब्जा जमा लिया इसने ...
कैशलेस आदमी का मोबाईललेस  होना वैसे ही जरूरी हो गया है
मुझे तो चिंता आने वाली पीढ़ी की लगी है ,अनुकूलन के गुण के कारण जब मनुष्यों की प्रजाति की गर्दन एक तरफ से झुकी हुई हो जाएगी .....अंगूठे कोई भी वस्तु को पकड़ने से मना कर देंगे ...
सारे कपड़ों के डिजाईन चेंज होंगे ,लोग कानों से बहरे तो हो ही चुके हैं हेडफोन से ...
खैर! अपडेट रहना भी जरूरी हो गया है सो हमने भी मोबाईल पाल लिया ,लेकिन ये इतने चिकने क्यों आते हैं समझ से परे हैं ,अब तक कोई हाथ से छूट के गिर गया तो किसी को बचाते बचाते भी स्क्रीन चकनाचूर हो गई इस हफ्ते ही ये पहुंचे बीमा स्कीम में नया चेहरा बनवा कर तो  लिख दे रही हूँ ,इनकी याद में ....


2 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "अपहरण और फिरौती “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

प्रतिभा सक्सेना said...

वह पुराना फ़ोन कैसे भूला जा सकता है!