Monday, June 12, 2017

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

हमने लिखने की कोशिश की खेती पर तो वर्चुअल दुनिया में गुम हो गए ,लिख न पाए हाथ में कलम की जगह गन्ना महसूस होने लगा ...और किसी तरह की सुझाई गई खेती की ही न जा सकी इसके बाद ....

नहीं लिखना आया, नहीं लिख सकी, पिता ही आंखों के सामने आते रहे, सिर्फ खेती को लहलहाते देखा ,पिताजी रोज खेत पर जाते थे जो करीब 12 किलोमीटर दूर था याद नहीं एकड़ में कितनी खेती थी,और वापसी में ताज़ी सब्जियां ,भाजियां लाते उनमें से कई भाजियां तो अब मिलती ही नहीं जो दादी माँ से बनवाती थी ,जब छोटी थी तो जिद्द करती मोटरसाइकिल "राजदूत" पर आगे बैठने की मोटरसाईकिल पर पिताजी आगे बैठा लेते,और हेंडल पकड़ाते पकड़ाते कब चलाना सीखा दिया मुझे पता ही नहीं लगा, नदी में पानी बहुत कम होता तो जब मोटरसाईकिल तेजी से निकालनी पड़ती तो दोनों ओर उड़ते फव्वारें की बौछार में जो मजा आता, अब दुनिया के किसी वॉटरपार्क में नहीं महसूस किया या कराया जा सकता ,जब नदी में थोड़ा ज्यादा पानी होता  तो बैल जोतकर छकड़े पर जाते ,कई बार बैलगाड़ी से बनी हवाई पट्टी के बीच दौड़ लगाती ऊपर उड़ती चिड़िया से रेस लेकर ,रास्ते में बेर की झाड़ियां रोक लेती और चिड़िया से हार जाने का बहाना मिल जाता....
खेत में चारों ओर मेड़- मेड़ हम घूमते कभी उंगली पकड़ ,कभी ऊंची फसल के बीच लुकाछिपी खेलते ,
साथ -साथ कच्ची सब्जियां ककड़ी,भिंडी,गाजर,मूली उखाड़ खाते जाते पानी के लिए एक गन्ना या टमाटर....
आम के बोरे आते खेत से घर , सब मिल चौक में आम चूसते, आपस में कॉम्पिटिशन करते
जब कपास आता तो कमरे में स्टोर बना दिया जाता , छुपा छाई खेलते ,कपास पर कूदते जब दादी डंडा लाती तो कपास के अंदर छुप जाते
मूंगफली आती को दादी नापकर ढेर बनाकर उसको हाथ से फोड़कर उसमें से दाने निकलवाती, कहती इतना ढेर खत्म होने पर खेलने मिलेगा या कोई और लालच देती ...
... बड़ा सा कुआं खुदवाया तो उसमें नीचे उतर कर पूजा करना आज भी याद आता है ,भुटटे,चने गेंहू निकलते तो सारा परिवार दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गांव जाता
घर में गाय भैंस की साज संभाल भी तभी सीखी...
अब कुछ नहीं....
सब बंट गया न वो खेत रहा न घर का चौक...
अब सब कुछ मिसिंग....😢
अपने बच्चों तक को ये अनुभव नहीं करवा पाए तो अब उनके बच्चों को कहानियों में भी शायद ही समझा पाएं
मैं तो सिर्फ शौकिया किसान की बेटी रही ....

गांव में खेत पर जो काम करते थे वो अब तक हैं उनके बच्चे भी वही काम करते हैं अब जो बचा हिस्सा है उस पर काम करते है ......

आज के किसान के बारे में क्या लिखूं -

अखबार शायद ही कोई किसान पढ़े जिसमें उसकी आत्महत्या की खबरें छपती है ,धरने प्रदर्शन चक्का जाम करके न तो फसलें उगाई जा सकती है न पशुधन की साज संभाल ही हो पाती होगी
जिसका बचपन खेती करते हुए बीता हो, जवानी खेती देखते हुए, और बुढापे तक जिसके पास खेती सपने में आने जैसी बचे असल में वही  किसान का दर्द समझ सकता है ,  उपवास करके पेट की भूख को मारा ही जा सकता है,भरा नहीं जा सकता ....

2 comments:

Udan Tashtari said...

अखबार शायद ही कोई किसान पढ़े जिसमें उसकी आत्महत्या की खबरें छपती है ..सच कहा..बहुत बढ़िया

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व बालश्रम निषेध दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।