Tuesday, July 11, 2017

मानसून


(काजल जी के nonsoon/मानसून लिखने पर ..चलती बस में लिखी थी 2014 में ...)---

माssssन सून....तेरी झड़ी में कई गुन
जल्दी से बरसने को तू अब मेरा शहर भी चुन....

काले-काले बादलों की एक सुन्दर चादर बुन
सूरज को तू ठंडा करके बना दे एक और मून...

सुनने को हम तरस रहे अब मेंढकी धुन
मंहगाई भी पोर-पोर से चूस रही है खून...

पसीने-पसीने बह गए सबके तेल -नून
आस है तेरे आने पे मिलेगी रोटी दो जून....
-अर्चना

4 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर.

ताऊ रामपुरिया said...

यहां तो इस साल भी मेंढकी धुन नही सुनाई दे रही है. बहुत सुंदर.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (13-07-2017) को "पाप पुराने धोता चल" (चर्चा अंक-2665) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

radha tiwari( radhegopal) said...

बहुत खूब जी