नमस्कार साथियों
आप सबके लिए एक श्रृंखला प्रकाशित करने जा रही हूँ ,ऑडियो के साथ
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शरद कोकास जी की लंबी कविता "देह" और उसका सस्वर वाचन स्वयं शरद जी द्वारा -
शरद कोकास का परिचय
श्री शरद कोकास नवें दशक के समकालीन कवि और एक महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इतिहास बोध पर लिखी चर्चित लम्बी कविता 'पुरातत्ववेत्ता' के लिए पूरे देश मंं प्रसिद्ध कवि शरद कोकास का जन्म बैतूल मध्यप्रदेश में हुआ । उनकी प्रारंभिक शिक्षा भंडारा तथा नागपुर महाराष्ट्र में हुई और उन्होंने क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय भोपाल से स्नातक तथा विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व में गोल्ड मैडल के साथ परास्नातक की उपाधि प्राप्त की ।
उनके तीन कविता संग्रह अब तक आ चुके हैं लम्बी कविता पुस्तिका “ पुरातत्ववेत्ता“ का प्रकाशन प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका पहल द्वारा, 2005 में किया गया, इससे पूर्व उनका कविता संग्रह 'गुनगुनी धूप में बैठकर' 1994 में प्रकाशित हुआ तथा 'हमसे तो बेहतर हैं रंग' 2014 में दखल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ ।
सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविता,कहानी ,समीक्षा और कालम के प्रकाशन के अतिरिक्त नवसाक्षरों हेतु तीन कहानी पुस्तिकायें ,चिठ्ठियों की एक किताब 'कोकास परिवार की चिठ्ठियाँ' भी उनकी प्रकाशित है ।
हिंदी ब्लोगिंग के प्रारम्भिक दिनों से ही शरद कोकास एक महत्वपूर्ण ब्लॉगर रहे हैं उनके पांच ब्लॉग हैं 'शको कोश ' , 'पुरातत्ववेत्ता' , 'पास पड़ोस' , 'ना जादू ना टोना' और 'आलोचक' ।
एक्टिविस्ट के रूप में अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति नागपुर, साक्षरता समिति दुर्ग आदि अनेक संस्थाओं में कार्य करते हुए “ मस्तिष्क की सत्ता “ विषय पर शरद कोकास विभिन्न शहरों और संस्थाओं में उनके व्याख्यान भी देते हैं । उनकी व्हाट्स एप विचार श्रंखला 'मस्तिष्क की सत्ता' तथा हिन्दी के ब्लॉग इंटरनेट पर काफ़ी पसंद किये जाते हैं। इसी शीर्षक से उनकी एक पुस्तक भी आ रही है।
एक्टिविस्ट के रूप में अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति नागपुर, साक्षरता समिति दुर्ग आदि अनेक संस्थाओं में कार्य करते हुए “ मस्तिष्क की सत्ता “ विषय पर शरद कोकास विभिन्न शहरों और संस्थाओं में उनके व्याख्यान भी देते हैं । उनकी व्हाट्स एप विचार श्रंखला 'मस्तिष्क की सत्ता' तथा हिन्दी के ब्लॉग इंटरनेट पर काफ़ी पसंद किये जाते हैं। इसी शीर्षक से उनकी एक पुस्तक भी आ रही है।
शरद कोकास इस समय गूगल पर सर्च किये जाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से हैं
शरद कोकास की एक महत्वपूर्ण लम्बी कविता ' देह ' विगत दिनों पहल पत्रिका में प्रकाशित हुई है । इस कविता को पंद्रह भागों में विभक्त कर उसके पंद्रह ऑडियो भी उन्होंने बनाये हैं ।
प्रस्तावना -
प्रस्तावना -
अपने ब्लॉग के पाठकों के लिए मैं उनकी लम्बी कविता ' देह ' के यह पंद्रह ऑडियो और उनके साथ कविता की स्क्रिप्ट प्रस्तुत कर रही हूँ । आज प्रस्तुत है प्रथम भाग और उसका ऑडियो । आप कविता पढ़ने के साथ साथ उसे सुनने का आनंद भी ले सकते हैं । ऑडियो में शरद कोकास की आवाज़ है और पार्श्व में है पियानो का संगीत ।
*शरद कोकास की लम्बी कविता*
_ *देह* _
_ *भाग 1* _
*दिन* जैसा दिन नहीं था न रात जैसी थी रात
धरती की तरह धरती नहीं थी वह
न आसमान की तरह दिखाई देता था आसमान
बृह्मांड में गूँज रही थी
कुछ बच्चों के रोने की आवाज
सूर्य की देह से गल कर गिर रही थी आग
और नए ग्रहों की देह जन्म ले रही थी
*अपने* भाईयों के बीच अकेली बहन थी पृथ्वी
जिसकी उर्वरा कोख में भविष्य के बीज थे
और चांद उसका इकलौता बेटा
जन्म से ही अपना घर अलग बसाने की तैयारी में था
*इधर* आसमान की आँखों में अपार विस्मय
कि सद्यप्रसूता पृथ्वी की देह
अपने मूल आकार में वापस आने के प्रयत्न में
निरंतर नदी पहाड़ समंदर और चटटानों में तब्दील हो रही है
रसायनों से लबालब भर चुकी है उसकी छाती
और मीथेन,नाइट्रोजन,ओषजन युक्त हवाओं में सांस ले रही है वो
*यह* वह समय था देह के लिए
जब देह जैसा कोई शब्द नहीं था
अमीबा की शक्ल में पल रहा था देह का विचार
अपने ही ईश्वरत्व में अपना देहकर्ता था वह
जिसने हर देह में जीन्स पैदा किए
डी ऑक्सी राइबो न्यूक्लिइक एसिड*1 अपनी सघनता में
रचते गए पाँव के नाखून से बालों तक हर अंग
जो हर सजीव में एक जैसे होते हुए भी कभी एक जैसे नहीं हुए
जो ठीक पिता की तरह उसकी संतानों में नहीं आए
और न संतानों से कभी उनकी संतानों में
*शिशिर* की सर्द रातों में हमारी देह में सिहरन पैदा करती
शीतल हवाएँ कल कहाँ थी
कल यही मिटटी नहीं थी नहीं था यही आकाश
आज नदी में बहता हुआ जल कल नहीं था
उस तरह देह में भी नहीं था वह अपने वर्तमान में
कहीं कुछ तय नहीं था कि उसका कौन सा अंश
किस देह में किस रुप में समाएगा
कौन सा अंश रक्त की बूंद बनेगा कौन सा माँस
पृथ्वी की प्रयोगशाला में
किस कोशिका के लिए कौन सा रसायन
उत्तरदायी होगा कुछ तय नहीं था
*पंछियों* की चहचहाहट और मछलियों की गुड़गुड़ाहट में
देह के लिए जीवन की वह पहली पुकार थी
कभी अंतरिक्ष से आती सुनाई देती जो
कभी समुद्रतलों के छिछले पानी से
आग्रह था जिसमें भविष्य की यात्राओं के लिए साथ का ।
*शरद कोकास*
******************
सुनिए यहाँ पर -
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3 comments:
बहुत सुन्दर
bhut badhiya hai
publish online book
बहुत बहुत आभार अर्चना जी । आपके द्वारा मेरी लम्बी कविता देह के पंद्रह भागो की स्क्रिप्ट की यह प्रस्तुति तथा उनके ऑडियो का प्रसारण अवश्य ही आपके ब्लॉग जे पाठकों को पदण्ड आएगा । ऑनलाइन हो जाने से यह भविष्य के पाठकों और हिंदी साहित्य के छात्रों के लिए भी बहुत काम आएगा ।
ऑडियो का प्रसारण कविता पाठ के प्रशिक्षण की तरह भी है । कविता पाठ कैसे किया जाए यह बताने का मैने प्रयास किया है
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