एक---
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रानू , मैं , और निशी-----गुप्तगंगा जाते हुए----त्र्यंब्केश्वर में----चल चला चल!!!
दो---
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मैं ,निशी के साथ------दो घडी वो जो पास आ बैठी!!!!
तीन---
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मैं ,निशी के साथ------ये तो कुछ भी नहीं!!!!
चार---
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शहर!!!!! वाह्ह्ह!!!!!
पाँच---
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शहर!!!!! वो ओ ओ ओ ओ ओ ओ ऊऊऊऊ!!!!!!
छ:---
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निशी गुप्तगंगा के द्वार पर------
सात---
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गुप्तागंगा------त्र्यंबकेश्वर (नासिक)---- बोलो ---ओम नम: शिवाय!!!!!
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पहला प्रयास है चित्रों भरी कहानी लिखने का------------
8 comments:
अरे, यह तो हमारी निशि है, आपको कैसे मिली? वहीं तो रहती है नासिक में.
समीर जी ये तो हमारी निशी है,मिली तो आपको है!!!!हाँ वहीं रहती है नासिक में!!!!!!!!
अच्छी तस्वीरें हैं, हमने भी नासिक घूम लिया!
सुन्दर चित्र। और लोग कहां है जी? दीपकजी-रचनाजी!
आप सबके साथ, कासिक शहर से भी मिल कर अच्छा लगा।
बहुत सुंदर चित्र, चलिये आप ने हमे भी घुमा दिया, बहुत सुंदर लगा, आप सब का साथ
बहुत ही सुन्दर चित्र. हम भी गए थे और एक पोस्ट भी डाली है परन्तु वहां ऊपर पहाड़ पर नहीं जा पाए थे. साथ के लोगों ने निरुत्साहित कर दिया था. आपके इस पोस्ट को हम देख नहीं पाए थे. आभार.
जाट देवता की राम-राम,
चित्र सुंदर लगे,
आपने और कुछ नहीं लिखा,
यात्रा के बारे में भी लिखा करो जी,
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