कभी जो राह तकते थे
वो अब नश्तर से चुभते हैं
किताबों में रखे हैं
फ़ूल वो अब खंजर से दिखते हैं...
हुई ये आँख भी गीली
और उदासी का समन्दर है
अगर कोई जाम भी
छलके तो आँसूओं से छलकते हैं...
कभी तुम लौट कर
आओ इसी उम्मीद में अब भी
लौटती सांस से
हरदम, बड़ी खुशियों से मिलते हैं...
न जाने कौन सा
किस्सा, किताबों सा छपा दिल में
उसी की हर इबारत
से, वो किस्मत को बदलते हैं...
-अर्चना
20 comments:
अरे वाह!! अब तो गज़ल भी कहनें लग गईं आप...बहुत उम्दा!!
बीते पल में गुजरे हर सुख दुःख के क्षण ऐसे ही आते जाते हैं . जीवन के सुखद लम्हे ही क्यों कसक लेकर आते हैं , शायद लौटकर फिर नहीं आ पाते . बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल जिसमे जीवन की आश का संचार दिखलाई देता है
बहुत बढिया!
बहुत ही प्यारी और कोमल अभिव्यक्ति..
सुंदर है जी
bhut hi pyari abhivyakti
बहुत ही उम्दा गजल |
बहुत सुंदर बात कही है इस ग़ज़ल में.
शानदार भाव हैं गज़ल के.
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गज़ल....
बेहतरीन गज़ल...बहुत सुन्दर
वैसे तो पूरी ग़ज़ल काबिले-तारीफ है लेकिन अर्चना जी तीसरा शेर बहुत ही उम्दा लगा ...बधाई
बहुत उम्दा गज़ल
वाह|||
बहुत ही बढ़िया गजल...
:-)
बेहतरीन
सादर
अच्छी रचना !
kya baat hai..nice
di:))
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