Wednesday, September 26, 2012

शायद ....गज़ल...

कभी जो राह तकते थे वो अब नश्तर से चुभते हैं
किताबों में रखे हैं फ़ूल वो अब खंजर से दिखते हैं...

हुई ये आँख भी गीली और उदासी का समन्दर है
अगर कोई जाम भी छलके तो आँसूओं से छलकते हैं...

कभी तुम लौट कर आओ इसी उम्मीद में अब भी
लौटती सांस से हरदम, बड़ी खुशियों से मिलते हैं...

न जाने कौन सा किस्सा, किताबों सा छपा दिल में
उसी की हर इबारत से, वो किस्मत को बदलते हैं...

-अर्चना 

20 comments:

Udan Tashtari said...

अरे वाह!! अब तो गज़ल भी कहनें लग गईं आप...बहुत उम्दा!!

Ramakant Singh said...

बीते पल में गुजरे हर सुख दुःख के क्षण ऐसे ही आते जाते हैं . जीवन के सुखद लम्हे ही क्यों कसक लेकर आते हैं , शायद लौटकर फिर नहीं आ पाते . बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल जिसमे जीवन की आश का संचार दिखलाई देता है

Udan Tashtari said...
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Smart Indian said...

बहुत बढिया!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही प्यारी और कोमल अभिव्यक्ति..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर है जी

somali said...

bhut hi pyari abhivyakti

मन्टू कुमार said...

बहुत ही उम्दा गजल |

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर बात कही है इस ग़ज़ल में.

shikha varshney said...

शानदार भाव हैं गज़ल के.

अनुभूति said...

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गज़ल....

Kailash Sharma said...

बेहतरीन गज़ल...बहुत सुन्दर

Saras said...

वैसे तो पूरी ग़ज़ल काबिले-तारीफ है लेकिन अर्चना जी तीसरा शेर बहुत ही उम्दा लगा ...बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत उम्दा गज़ल

मेरा मन पंछी सा said...

वाह|||
बहुत ही बढ़िया गजल...
:-)

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन

सादर

आनंद said...

अच्छी रचना !

PK SHARMA said...

kya baat hai..nice

मुकेश कुमार सिन्हा said...

di:))

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