Saturday, October 6, 2012

शाश्वत प्रेम...

हर तरफ़ बस तुम ही तुम ....ये ऐसा भाव है जो सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है .... आप भी महसूस कीजिए --
सलिल वर्मा जी की एक लघुकथा में --- मैं हूँ ना!



और अब एक गीत मेरे मन से ---तुम्हीं मेरे मन्दिर तुम्हीं मेरी पूजा
 


7 comments:

Smart Indian said...

वाह!

प्रवीण पाण्डेय said...

मधुर...

Amrita Tanmay said...

अति सुन्दर..

अरुन अनन्त said...

उम्दा रचना

मन्टू कुमार said...
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मन्टू कुमार said...

वाह..!
सलिल जी की लेखनी और फिर आपकी आवाज...क्या कहने..|

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ईमानदारी से कहूँ तो मेरी रचना को स्वर मिल गए जैसी अनुभूति हो रही है.. और उसके साथ गीत ने तो सोने पे सुहागा वाला काम किया है!!