Friday, February 20, 2009

अनजाने मे

अनजाने मे ही सही, मगर दो दिन पहले ही मेरे साथ ऐसा हादसा हुआ-स्कूल मे ड्राइंग कॊपी न लाने के कारणमुझे कुछ बच्चों (४थी क्लास) के घर फ़ोन करके बताना था, उनमें से एक के बारे में मुझे पहले ही बताया गयाथा कि ये अपने मामा के यहाँ रहता है,और इसके मामा कभी फ़ोन ही नही उठाते।मै फ़ोन लगाने की कोशीशकरते हुए (घंटी जा रही थी) उस बच्चे से सवाल भी करते जा रही थी वह वार्तालाप --
-मामा के यहाँ रहते हो?
-हाँ
-कहाँ?
-खजराना
-मामा क्या करते है?
-मालूम नही
-और पापा कहाँ रहते है?
-खजराना
-अरे,दोनो वहीं रहते है तो आप पापा के पास क्यो नहीं रहते?पापा का घर दूर है क्या ?(मुझे लगा था स्कूल दूरपडता होगा)
-नहीं,पास में।
-फ़िर,बोलो पापा के पास क्यो नही रहते हॊ?
इतने मे किसी बच्चे ने कहा मेडम-ये गाली भी बहुत देता है।
-क्यों, आप गाली देते हो?
-कभी-कभी
-क्यों?
बच्चा चुप रहा।
-आपके घर मे कोई गाली देता है?
बच्चे ने हाँ मे सिर हिलाया।
-कौन?
-मामा
-मै अवाक सी उसकी ओर देखती हुई बोली-किसको देते है?
-सबको
-मामा के बच्चे है?
-हाँ
-आपने बताया नही,पापा के पास क्यों नही रहते हो?
बच्चा सहमा-सा मुझे देख रहा था,थोडा रुककर बोला हमारी मम्मी को पापा ने तलाक दे दिया है।
जबाब सुनते ही मै सन्न रह गयी,उस बच्चे से कुछ न कह सकी,सिर्फ़ इतना ही कहा गाली देना बुरी बात है ना, आपको नही देना चहिये।आगे से कभी किसी को गाली मत देना और ड्राईंग कॊपी लेकर आना।फ़ोन की घंटीअब भी जा रही थी।
मुद्दे की बात--"समीर जी ने अपने ब्लोग पर लिखा है-लोग बोलने के पहले अगर वाणी नियंत्रित करें,विचारोंको यूं ही न बाहर निकाल दें,जरा अन्य पहलू पर भी नजर डालें,तो शायद ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता हैकि कोई आहत न हो,न किसी के दिमाग पर ऐसी बात अंकित हो जाए जो जीवन भर पोछे से न पूछे।"
कितनी सही है- यहाँ बच्चे के दिमाग पर ऐसी बात अंकित है जो जीवन भर न पोछी जा सकेगी।और मेरी कहीबात से मै खुद इतनी आहत हूं कि शायद जिन्दगी भर उस बच्चे को भुला न पाऊंगी।

5 comments:

Udan Tashtari said...

कितने ही सही परिपेक्ष मे आप मेरी बात इतनी सुन्दरता से लाई हैं-लिखना सफल रहा. बहुत आभार.

Vinay said...

कुछ बातें हम कभी नहीं भुला पाते, शायद आपके लिए यह उनमें से एक बन गयी है। अच्छा लिखा है।


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गुलाबी कोंपलें
सरकारी नौकरियाँ

Archana Chaoji said...

आभारी तो मै आपकी हूं समीर जी,जो आपने मुझे अपना ब्लॊग पढ्ने के लिये कहा,और मेरा भी लिखना सफ़ल रहा जो पहली टिप्पणी आपकी आई।
कल मैने अखबार न पढ्ने के बारे मे लिख था।आज सुबह स्कूल मे पहुंचते ही "पत्रिका" अखबार के मुख्प्रश्ठ पर नजर पडी--"भगवान करें आप सब हार जाए"और आज ही ८वी,९वी,११वी क्लास के बच्चो की वार्षिक परीक्षा का पहला पर्चा था।अब आप ही अन्दाजा लगा सकते है कि बिना विचारे किसीकी कही बात, कहाँ जाकर, कितनों को आहत कर रही है।
धन्यवाद विनय जी ।

rachana said...

Sunder-BHAWANATMAK LEKHAN KAY LIYE BADHAI.

Deepak BAJAJ

आनंद said...

बहुत ही मार्मिक घटना। आपके अनुभव बड़े ओरिजनल हैं, दिल को छू जाते हैं। इतना खजाना है आपके पास और आप अभी से टंकी पर चढ़ गईं! चिंता न करें, हम टिप्‍पणी दें न दें, पढ़ ज़रूर रहे हैं।


- आनंद