पिछ्ले वर्ष महिला दिवस की ही बात है -- स्कूल मे कुछ शिक्षिकाओं का सम्मान किया जाना तय किया गयाथा,मेरी भी गिनती पुरानी शिक्षिकाओं मे की जाने लगी थी ,मुझे पता चल गया था कि लिस्ट मे मेरा नाम भीहै। अभी तक कभी सामने आकर कुछ बोलने का काम नही पडा था।मै सोच रही थी कि अगर मेरा नाम पुकाराजाएगा तो मुझे वहाँ जाना पडेगा , और अगर वहाँ गई तो सिर्फ़ थैन्क्स बोल कर आना अछ्छा नही लगेगा । मुझेबहुत घबराहट हो रही थी, तब मुझे रचना (छोटी बहन ) की बात याद आई कि कैसे उसने अपनी बेटी के फ़ैन्सीड्रेस प्रोग्राम के लिए , कुछ अलग करने की चाह मे चंद लाईने लिखी , उसने भी तो कही नही सीखा, बससरस्वती माता का ध्यान किया और जो कुछ लिखा, वही आज महिला दिवस पर दोहराना चाहती हूँ-----
"आव्हान "
आओ सुनहरे सपनों को बुनें ,
अच्छाई और सच्चाई को चुनें ,
बुजुर्गों के अनुभवों को भुनें ,
अभावों में अपना सर न धुनें ,
मुश्किलों से लडें उत्साह में दूनें ,
अपने दिल की सुनें ,
फ़िर कोई न कह सके - देर कर दी तूने ,
चलो मेरे साथ आसमान छूने ।
इसी के साथ दुनिया की तमाम महिलाऒ , जो कहीं न कहीं सर्जक की भूमिका निभा रही है, को मेरी ओर से
महिला दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएँ ।
2 comments:
बहुत सुंदर ... महिला दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएँ ।
कविता के भाव सुन्दर हैं। महिला दिवस पर आपको हार्दिक बधाई।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक
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