Tuesday, March 10, 2009

जब होली मे रंग उड गये---

बात कोई साल पहले की है बहुत दिनो से मेरा नागपुर जाना नही हुआ था। मेरी बेटी ने १२वीं की परीक्षा दीथी उस वर्ष मैने सोचा कि कालेज मे एड्मिशन लेने के पहले एक बार अपनी दादी का आशिर्वाद भी ले लेगीऔर मेरा कुछ आफ़िस का काम (कम्पेन्सेशन का)भी निपटा लूंगी।
खैर प्रोग्राम बनाया और मै और मेरी बेटी होली के एक दिन पहले इंदौर से नागपुर के लिये रात की बजे वालीट्रेन से निकले। पहली बार हम दोनो अकेले सफ़र कर रहे थे। स्टेशन पर आधा घंटा पहले ही पहुँच गये गाडीप्लेट्फ़ार्म पर ही खडी थी , मगर डिब्बे मे लाईट नही थी, गाडी छूटने मे समय था , मैने कहा -अभी यही बेन्चपर बैठ जाते है ,लाईट चालू हो जाने देते है तब तक कुछ लोग भी जायेंगे तब अन्दर बैठेंगे। और हम बेन्चपर बैठ गये। १०-१५ मिनट बाद डिब्बे की लाईट भी चालू हो गई ।मगर बैठने के लिये हमारे दोनो के अलावाकोई भी दिखाई नही दे रहा था। हम दोनो एक-दुसरे की ओर देख कर मुस्करा रहे थे कि ---गजब ? क्या हमदोनो को ही होली पर बाहर जाना है। आखिर - मिनट पहले हम अपनी सीट पर बैठ गये सोचा शायदअगले स्टेशनॊं से रिजर्वेशन होगा तब बैठेंगे दोनो मस्त आमने -सामने की सीट पर बैठ गये चेन बेचने वालाबार-बार जा रहा था हमने उसे मना कर दिया--- हमें कोई जरूरत नही है ।बाहर का नजारा देख रहे थे ।तभीदोनो की नजर एक व्यक्ति पर पडी ,वो बार-बार हमारी खिडकी के आस-पास चक्कर काट रहा था। हम दोनो नेआँखों ही आँखों मे इशारा किया और समझ लिया कि इससे सावधान रहने की जरूरत है , अभी हम ये समझ हीपाते कि वह व्यक्ति हमारी खिडकी के पास आया और कहने लगा--- मेडम, इस बोगी मे आप दोनो के अलावाकोई और नही है , बाहर चार्ट भी लग गया है , सिर्फ़ आप दोनो का ही नाम है पूरी बोगी में , आप टी. टी . से कहकर सीट चेंज कर लिजिए। (जिसे हम गलत समझ रहे थे , वो हमारा भला सोच रहा था) जैसे ही सुना बेटीदौडकर पहले चार्ट देखकर आई ,बोली हाँ माँ हम दोनो ही है मै घबरा गई ,( गाडी छूटने मे मिनट ही बाकीहोगे) , बेटी को भेजा -जा जल्दी से टी .टी. को ढूँढ कर बोल ---- बेटी दोड़कर गई टी . टी . महाशय मिल भीगये कहा--- अभी जाकर बैठिए मै आता हूँ गाडी रवाना हो चुकी थी हम दोनो बेसब्री से उसका इंतजारकरने लगे सारा मजा काफ़ूर हो गया था,सारे भगवान याद आने लगे थे , अब हम एक दूसरे को अकेले छोडकरभी जाने की हिम्मत नही कर पा रहे थे सो चुपचाप बैठ गये
करीब १० मिनट बाद टी. टी . आया , उसने बताया अगले डिब्बे मे जगह है --एक केबिन मे लोग थे ,एक मे२लोग हमने सोचा अब चेंज ही कर रहे है तो ज्यादा लोगो के पास चले जाते है ,और हमने हमारी सीट लोगोंके साथ ले ली।
खैर अब थोडी शान्ति मिल गई थी तो आराम से बैठ कर बतियाने लगे ,आजू -बाजू वालों को बताया कि सीटक्यों बदली? सफ़र शुरू हो चुका था ,अब अपने आसपास नजर दौडाई पुरूष, महिलाएँ ,और तीनोँ की गोद मे वर्ष से कम उम्र के बच्चे। काफ़ी अछ्छा लगा था जगह बदल कर
चलो माँ अब कुछ खा ले--- बेटी कि आवाज आई---- हाँ चलो , कह कर खाना खा लिया।(वैसे सफ़र मे खाकरभी आये हो तो खाना ही पडता है)
अब तक ११ , साढे ११ बज चुके थे ,बच्चो की माताएँ थक चुकी थी ,वो सो गई। हम दोनो और तीनो पुरूष भीसोने की कोशिश करने लगे थोडी देर मे सब सो चुके थे ।एक झपकी के बाद मै बाथरूम जाने के लिये उठीदेखा एक महिला जगी हुई है, मै जाकर वापस आई तो वो बोली --दीदी आप थोडा मेरे बच्चे को भी देखलिजिए ,मै भी हो आती हूँ (उसे उपर की बर्थ मिली थी ,वो शायद वहाँ बच्चे के गिरने के डर से ठीक से सो भीनही पा रही थी) वो लौट कर आई , उसे ठीक से सोने की सलाह देकर मै अपनी जगह पर सोने लगी इतने मे हिनीचे वाला बच्चा रोने लगा।
बस इसी तरह सोते जागते सफ़र कट ही रहा था कि भोपाल मे ट्रेन रूकी ।थोडी देर बाद फ़िर सफ़र शुरू हुआ।
अभी १५ मिनट ही बीते होंगे कि एक आवाज ने हमे जगाया--- अरे ,अरे देखो वो आपका सुट्केस तो नही लेगया , हम सब फ़टाफ़ट उठे----- झुक कर देखा---और ये क्या हमारा एक सूट्केस गायब था,बाजु वाले की भीएक थैली गायब थी , हम ट्रेन मे दोनो तरफ़ देखने के लिये भागे भी--- तभी ट्रेन की चेन भी खींचीं गई थी ,बहुतसारे लोग हम सबको भागते दिखाई दिये ,हम लोग कुछ भी समझ नही पाये ,वो पुकारने वाला आदमी भी उतरगया, चेन खींचीं जाने पर
पूरी ट्रेन मे कोई टी . टी . नही दिखाई दिया हर डिब्बे से लोग दौड कर रहे थे ,पता चला बहुत से लोगों कासामान चोरी गया था। मेरी रुलाई फ़ूट पडी। मेरा जो सूटकेस गया था उसमें मेरा पर्स जिसमे , सोने की चेन , अंगूठी वगैरह था ,और कुछ नगदी भी रखी थी ।बाकी मेरी बेटी के सारे कपडे थे। साथ वाले भाई साहब की थैलीमे भी उनके बच्चे को गिफ़्ट मे मिले गहने ही थे पहली बार ही ऐसा हुआ था कि मैने अपना किमती सामानअपने हेंड्बेग मे रख कर सूट्केस मे रखा था। सबसे पहले माँ याद आई , फ़ोन पर बताया ,ढाढस के दो शब्दसुन कर आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे वो इन्दौर वाले भाईसाहब भी किसी दुसरे डिब्बे मे थे पता चलतेही ये देखने के लिये आए कि हमने जगह बदली थी या नही ,कही हमारे साथ कुछ और तो नही हुआ? बोले--- चलो जो हुआ अछ्छा ही हुआ अगर आप उस बोगी मे अकेले होते तो और भी बुरा हो सकता था
, खैर सोच लियाये भी अपने साथ होना लिखा होगा।
थोडी देर बाद ईटारसी स्टेशन आया , ट्रेन रूकी , मै और वो भाई साहब चेन खींच कर ट्रेन रोकने की हिदायतदेकर प्लेट्फ़ार्म पर थाने मे रिपोर्ट करने गये ,लेकिन जिसकी कि उम्मीद थी वैसा ही हुआ ,वहाँ कोई नहीथा,जो एक -दो आदमी थे वो भी दरवाजा बंद करके सो रहे थे ,इस बीच दो बार चेन खींच कर ट्रेन भी रोक लीगई थी ,हम वापस गए।(चेन खींच कर ट्रेन क्यों रोकी गई ये पूछ्ने भी कोई नही आया )
किसी ने सलाह दी सुबह नागपूर मे रिपोर्ट कर देना। अब मरते क्या करते बैठ गए फ़िर से -----सोचतेसोचते ,एक -दो झपकी मारते-मारते---- सुबह किसी तरह नागपूर पहूँच गए अब ???
सोचा कोई तो अपने साथ रिपोर्ट करेगा ,मगर हम गलत थे ,हर कोई अपने घर पहूँचना चाहता था,कोई पुलिसके पचडे मे नही पडना चाहता था,किसी को कोई उम्मीद भी नही थी कि कोई कारवाई होगी ,लेकिन मै बेटी कोलेकर थाने मे गई ,पहला अनुभव था-- सब होली खेलने के मूड मे थे , कुछ " महक " रहे थे ,कुछ " चहक " रहेथे।
- हमारे तो सारे रंग ही उड चुके थे तब तक ,करीब एक घंटा बैठाने के बाद बीच-बीच मे होली -मिलनकरके हमारी रिपोर्ट लिखी गई , ( जिस पर अमल होना अब तक बाकी है ,हम तो भूल भी चुके है कि हमने ऐसीकोई रिपोर्ट लिखवाई थी ) , खैर जैसे तैसे घर पहूँचे अपना बचा-खुचा सामान लेकर ! अब बेटी का चेहरा देखनेलायक था--- उसे रह-रह कर अपने कपडे याद रहे थे (नागपूर मे उस समय दिन तक मार्केट बंद था ,अबबारी हँसने की थी) , अपनी दीदीयों के बिना साईज के कपडे उसे पहनना पडे ,हर कोई मजाक करता ---येअब नये कपडे----!!!!
अब भी सब याद आता है पर अब हम थोडे समझदार हो गए है---अपने मन को कुछ इस तरह समझातेहै---बेचारा चोर , कितना खुश हो गया होगा , त्योहार पर इतने कपडे , गहने ,पैसे मिलने से , अगर उसके पासये सब होता तो वो चोरी थोडी ही करता !!! हो सकता है उसकी भी मेरी जैसी कोई बेटी या बहन होगी!!!औरइतना सब कुछ त्यौहार पर पाकर कितना खुश हुए होंगे वो !!! शायद उसने उसके बाद कोई चोरी की हो!!!!
बस ये सब सोच कर मन खुश हो जाता है कि अनजाने ही सही किसी की मदद तो हो गई( अब कोई जानबूझकर तो हम इतना कुछ किसी को देते नही) और ये सब सोच के
--- होली के उडे रंग वापस लौट आये है।
"सभी ब्लोगर साथीयों को होली मुबारक "

12 comments:

Prakash Badal said...

आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

नीरज गोस्वामी said...

होली की रंग बिरंगी शुभकामनाएं.
नीरज

अभिषेक मिश्र said...

चोर के प्रति इन विचारों ने ही सांत्वना दी होगी. भविष्य में आने वाली होलियाँ शुभ हों.

रवीन्द्र प्रभात said...

सही और सार्थक चर्चा की है आपने ....होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

Udan Tashtari said...

होली महापर्व की बहुत बहुत बधाई एवं मुबारक़बाद !!!

-इसीलिए बुजुर्गों ने सलाह दॊ है कि एतिहात बरतने में कोई बुराई नहीं. डाकुओं से तो नहीं, मगर चेन लगा कर ऐसे ऊठाईगीरों से तो बचा जा ही सकता है.
आगे से ध्यान रखियेगा. :)

अनूप शुक्ल said...

आपकी जिंदगी में नये-नये रंग जुड़ें। होली मुबारक!

Anonymous said...

होली की रंग बिरंगी शुभकामनाएं

राज भाटिय़ा said...

आप की रेल यात्रा बहुत प्यारी लगी, ओर आप के लिखने का ढंग भी अनुठा है ,्बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद.
आप को ओर आप के परिवार को होली की बहुत बहुत बधाई

L.Goswami said...

कोई बात नहीं ..ज्यादा बुरा भी हो सकता था. नहीं हुआ इसका शुक्रिया करें भगवान को

Anonymous said...

शायद चोर को आपके सामान की ज़्यादा ज़रूरत रही होगी।

चोर के प्रति आपका नज़रिया पसंद आया।

Shekhar Suman said...

ये क्या, ये तो कोई पुरानी पोस्ट पढ़ गए हम..... चलिये अंजाने में ही सही आपका भला हो गया, वरना हम कौन सा इतनी पुरानी पोस्ट खुद से पढ़ने आने वाले थे.... :P

अजित गुप्ता का कोना said...

होली पर रंग की जगह चोर चूना लगा गया। तभी तो कहते हैं कि सफर में सावधानी की आवश्‍यकता है। होली की शुभकामनाएं।