आजकल हर बच्चा पढने के लिए घर से दूर अकेला रहता है , मेरे बच्चे भी बाहर रह कर पढाई कर रहे हैं , आपमें से भी बहुतों के होंगे ।जब बच्चे जाते हैं तो हम उन्हे सैकडों हिदायते देते हैं , और माँ के लिए तो उसके बच्चे कभी बडे ही नहीं होते हैं । सबकी माँ को एक जैसी ही चिन्ता होती होगी --जैसी मुझे होती है ------
फ़िर एक मौका ,जैसे ऊपरी मंजिल पर ,
छोटा -सा झरोंखा ,
कोई चूक होने ना पाए ,
डोर हाथ से छूट ना जाए ,
पक्के नियमों पर चलना , जैसे--
सुबह उठना ,रात को सोना ,
रोज नहाना , शीश झुकाना ,
समय पर खाना ,
कार्य की योजना बनाना ,
समय पर कार्य खतम करना ,
घूमना , और फ़िर---
चैन से आराम करना ।
यदि इन नियमों को पालोगे ,
तो तुम्हारे नए " डेस्टिनेशन " को पा लोगे ।
मेरा आशिर्वाद तुम्हारे साथ है----
देखो मंजिल तुम्हारे कितने पास है ,
ईमानदारी से मेहनत करना----
और उम्मीदों पर खरा उतरना ,
फ़िर देखना मंजिल तुम्हारे कदम चूमेगी ,
और तुम्हारी माँ खुशी से झूमेगी ।
9 comments:
सचमुच मेरी माँ भी यूँ ही कहती हैं
सही है ... मैं भी अपने बेटे को यही बताती हूं।
मेरा भी मुन्ना जब बाहर पढ़ने गया तो ऐसे ही विचार थे और आज भी जब वह सात समुन्दर दूर चला गया।
pataa nahin kyon baba aadam jamaane se hi aadmi naam kaa yah jeev apni tamaam mahatwkaankshaayen apne bacchhon par hi laadtaa aayaa hai....asal men ye destination to usi kaa naa hota hota hai....yaani ki maa yaa baap kaa...ya phir dono hi kaa...!!
सफर में आने का शुक्रिया रचना जी। हमें भी यहां आकर अच्छा लगा। ऐसी ही सीधी सच्ची बाते पसंद आती हैं...
जै जै
अजित
अर्चना जी,
मेरे ब्लाग पर पधारने के लिये धन्यवाद। आपका ब्लाग देखा - काफ़ी अच्छा लगा। जितना भी जहां भी कुछ देखा/पढा अच्छा लगा। खासकर "मां" शीर्षक के अन्तर्गत की रचनायें बहुत सुंदर हैं।
सादर,
अमरेन्द्र
अनिलकान्त जी,संगीता जी,उन्मुक्त जी,भूतनाथ जी,अजित जी व अमरेन्द्र कुमार जी--अपनी बात रखने के लिए शुक्रिया ।
वास्तव ने बच्चों को ऐसी ही शिक्षा हर माँ बाप को देनी चाहिए /वरना आज कल तो बच्चा परीक्षा देने जाता है तो बाप कहता है "चिट सम्हाल कर रख लेना , गाईड में से प्रश्नों के उत्तर फाड़ का गाइड फैंक देना ,डरना मत घवराना मत , इनविजिलेटर ज्यादा गड़बड़ करे तो ठोक देना .......को /
दिल को छू लेने वाली रचना लिखी है आपने, दूर रहकर माँ की याद भी तो बहुत याद आती है ।
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