Sunday, July 26, 2009

जो होता है अच्छे के लिये होता है--------

आज जब मै स्कूल पहुंची थी,सब कुछ ठिक-ठाक था---मसलन---बारिश नही हो रही थी ,सभी बसें समय पर पहुँच चुकी थी ,प्रार्थना की घंटी भी समय पर ही बजी थी ---और रोज की तरह सब बच्चे चेकिंग के डरावने माहौल से निकलकर अपनी-अपनी कक्षाओं में जा चुके थे ......
अभी मै बस बच्चों को भेजकर पलटी ही थी कि एक सर (साथी) ने बताया ------आपका मोबाईल बज रहा है.....
मुझे लगा दोनो बच्चों मे से किसी का होगा.....जब तक पर्स तक पहुँचू कि बजना बन्द हो गया.........फ़िर भी दोबारा बजने का इंतजार करते हुए मैने miss call (अब इसे हिन्दी में क्या लिखूं) देखा.........पर ये क्या ...ये तो स्कूल ओफ़िस से ही था.......क्या हुआ होगा ??? सोचते-सोचते ओफ़िस में पहूँची.................. दरवाजे पर ही प्रिन्सिपल मेडम खडी थी ......वे मेरा ही इंतजार कर रही थी..............देखते ही बोली..................अर्चना एक काम करो............आज तुम लाईब्रेरी में बैठ जाओ..........( उनके चेहरे पर कातिलाना मुस्कुराहट थी ).........लाईब्रेरी! ! !..........मैने लगभग चीखते हुए दोहराया था......................हाँ , उसी चिरपरिचित मुस्कुराहट को हँसी मे बदलते हुए वे बोली आज अपनी लाइब्रेरियन मेडम नही आयी है..................और मुझे भी बरबस हँसी ही गयी .....हँसते हुए ही मैने कहा--------------बस यही काम करना बाकी था..............ओफ़िस स्टाफ़ के चेहरे भी खिल उठे ...........उन्हे तो जैसे भगवान मिल गये............फ़टाफ़ट अरेंजमेंट की डायरी पर मेरा नाम चढा दिया गया............. पिछले ग्यारह सालों मे अपने स्कूल के लिये मैने हर विभाग मे कार्य किया है ................ (अब विद्यालय परिवार की भरोसेमंद कर्मचारी बन गयी हूँ मै) ...... मैने कातर नजरों से देखा....................सातों के सातों पिरियड मुझे दे दिये गये थे .........फ़िर भी हिम्मत करके मेडम से कहा -----सातो पिरियड मुझे ही लेने होंगे ??? मेडम -----हाँ बच्चे बारिश में बाहर भी तो नही जा सकते ???................मै बोल पडी -------मेडम एक काम करती हूँ .......लाईब्रेरी के बदले मै हर एक क्लास में चली जाती हूँ.................कम से कम एक जगह तो नही बैठना पडेगा...............फ़िर कुछ सोच कर मेडम ने कहा--------नही तुम सिर्फ़ ११-१२ वी क्लास के बच्चों के पिरियड ले लो............ठीक है ( दो पीरियड तो घूम पाउंगी मै सोचकर )..............खुश हो गयी मै...........पहली बार लाईब्रेरी में इतनी देर तक रूकना था...........(सच्ची अपनी जिन्दगी में अब तक लाईब्रेरी में कभी पढाई की हो या कुछ भी पढा हो , याद नही आया )..........खैर..........अब जब बच्चों के सामने बैठना ही था तो एक -दो पुस्तकों पर नजर डाली ---------------और नीचे के खाने में रखी एक संस्कृत की किताब पर नजर पडी-----------कुल या चार साल ही संस्कृत पढी होगी मैने ..........पर बहुत मजा आता था उसके श्लोक पढकर ...सो उसी को उठाया और जो कुछ मेरे हाथ लगा .............कुछ श्लोक ( इन्हे श्लोक ही कहते है ना ?) उनके अर्थ------ जैसा मैने समझा----------शायद आपने भी कभी पढ़े हो तो याद जायेगे या पढ़े हो तो (शायद) अच्छे लगेगे ..................

--- हस्तस्य भूषणं दानं , सत्यं कण्ठस्य भूषणम्
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं ,भूषणें किं प्रयोजनम्
अर्थ --हाथ का आभूषण दान है , गले का आभूषण सत्य है , कान का आभूषण शास्त्र या अच्छा श्रवण है , तोफ़िर आभूषणो(गहनों) की क्या आवश्यकता है ?

---उद्यमेन् हि सिद्ध्यन्ति , कार्या्णि मनोरथै:
नहिं सुप्तस्य सिंहस्य , प्रविशन्ति मुखे म्रगा:
अर्थ-- मेहनत करने से ही कार्य पूरे होते है , सिर्फ़ इच्छा करने से कार्य पूरे नही होते , जिस प्रकार कि सोये हुएसिंह के मुंह मे हिरण भोजन के रूप मे प्रवेश नही करता (उसे शिकार करना पडता है भोजन के लिए )

---यथा हि एकेन चक्रेण , रथस्य गति: भवेत्
एवं पुरूषकारेण् विना , दैवं सिद्ध्यति
अर्थ् -- जिस प्रकार एक चक्के ( wheel ) से रथ की गति नही हो सकती, उसी प्रकार परिश्रम केबिना (without effort ) भाग्य ( destiny) सफ़लता नही देता

---नमन्ति फ़लिन: व्रक्षा , नमन्ति गुणिन: जना:
शुष्क व्रक्षाश्च मूर्खाश्च् , नमन्ति कदाचन्
अर्थ-- फ़लदार व्रक्ष /गुणी लोग , झुकते है/नमस्कार करते हैं , परंतु सूखे हुए व्रक्ष और मूर्ख लोग कभी नहीझुकते है

--- म्रक्षिका: व्रण:मिच्छन्ति , धनमिच्छन्ति पार्थिवा:
नीच: कलहमिच्छन्ति , शान्ति मिच्छन्ति साधव:
अर्थ-- मक्खियाँ घाव चाहती है , राजा धन चाहता है या धनप्राप्ति की ईच्छा रखता है , नीच लोग ( mean minded people ) झगडा चाहते हैं , और अच्छे लोग ( good people ) शान्ति ( peace ) चाहते है

--- अक्रोधेन जयेत् क्रोधम् , असाधुं साधुनां जयेत्
जयेत् कदर्यं दानेन् , जयेत सत्येन चान्रतम्
अर्थ-- क्रोध को ,क्रोध करके जीतना चाहिये , दुष्ट (bad person/a wicked ) को साधुभाव (by being good ) द्वारा जीतना चाहिये , कंजूसी (miserliness ) को दान द्वारा ( by being generous ) जीतना चाहियेऔर झूठ को सत्य द्वारा (by truth , i.e. by being truthful ) जीतना चाहिये


ये सब उस किताब से उतारने मे कब समय बीत गया पता ही नही चला.........धन्यवाद मेडम का.........जिन्होने आज लाईब्रेरी से मुझे रूबरू करवाया..........

विशेष :--- प्रयास किया है शुद्ध लिखने का फ़िर भी कुछ मात्राएँ ( र ) की टाईप नही करना आता , इसलिये
( वहाँ गलती है --- अर्थ स्वयं लिखे है , गलती संभव है ------क्षमाप्रार्थी हूँ

7 comments:

अनिल कान्त said...

जब तक में 12 वीं कक्षा में था तब तक हिंदी के साथ संस्कृत भी मिलती थी....बहुत अच्छा लगता था पढ़कर....आज आपकी पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Anonymous said...

ये श्लोक तो हमनें भी स्कूल में पढ़ा था.

Drmanojgautammanu said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति । बधाई स्कूल के बीते दीनों की याद ताजा करने के लिए ।

दिगम्बर नासवा said...

अच्छा लगा पढ़ कर ................

Vinay said...

पुनश्च याद कराने का शुक्रिया!
---
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम

M VERMA said...

इसे कहते है अभिशाप का वरदान बनना.
बहुत अच्छा संस्मरण. अच्छा लगा -- सच्ची

pushpendrapratap said...

sundar