Thursday, August 18, 2011

बिखरते सपने -टूटती आस



"एक दिन सुबह स्कूल जा रही थी, स्कूल के सामने ही प्रिंसीपल साहब नजर आ गये,रोज की तरह ही नमस्ते किया, तो वह पास आ गये. थोड़ा आश्चर्य तो हुआ मगर मैं रुक गई. उन्होंने कहा कि- क्या आप शाम को लौटते समय ५ मिनट के लिए स्कूल आ सकती है?... न करने का सवाल नहीं था तो मैं सहमति जताती हुई स्कूल के लिए निकल पड़ी. सारा दिन रह-रह क़र यह विचार आता रहा कि आखिर क्या जरुरत आ गई हैं प्रिंसपल साहब को जो उन्होंने मुझे बुलाया है|   ----------एक अंश - बिखरते सपने- टूटती आस से

पढ़िये "हिन्दी गौरव" पत्रिका (जू्न-जुलाई अंक)में प्रकाशित ये रचना--- पेज -47


9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जाकर पढ़ते हैं।

Smart Indian said...

शिक्षा के नाम पर दुकान चल रही है। विषय अच्छा लगा।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

इस घटना का अंत सचमुच एक उछाले हुए सिक्के की तरह लगा जो किस पहलू की ओर से गिरेगा यह पता नहीं.. शिक्षा तो व्यवसाय हो ही चुका है इसलिए उस घटना पर आश्चर्य नहीं होता.. लेकिन उसके भविष्य पर चिंता होती है!!

बाल भवन जबलपुर said...

jee
udhar dekha
bahut umda

Avinash Chandra said...

सच है, बस!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर रचना....हार्दिक बधाई।

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लो जी, मैं तो डॉक्‍टर बन गया..
क्‍या साहित्‍यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति

G.N.SHAW said...

nice post .

sanjeev said...

Aapki rachna padi, ye kewal aapke man ki ek abhivyakti n hokar aaj ka yatharth hai, shiksha ke naam pe 5 star school, medical, engineering colleges khole jakar, dalalo ke madyam se addmssn karaye jate hai, aur vo jo in se shiksha lekar nikalte hai,unki atma kisi sewa bhavi ki n hokar ek chalak bussinessmen ki ho jati hai,. is sthiti se desh ko aap shikshak hi ubar sakte hai, Jwalnt samsya ko ubharne ka ek achha prayas bahut bahut badhai aapko