चल पड़े जिधर दो डग
-प्रस्तुत है सोहनलाल द्विवेदी जी द्वारा रचित ’युगावतार गाँधी’ का एक अंश चल पड़े जिधर दो डग मग में,
चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दॄष्टि,
मुड़ गये कोटि दॄग उसी ओर,
जिसके सिर पर निज धरा हाथ,
उसके सिर रक्षक कोटि हाथ,
जिस पर निज मस्तक झुका दिया,
झुक गए उसी पर कोटि माथ,
हे कोटिचरण ! हे कोटिबाहु !
हे कोटिरूप ! हे कोटिनाम !
तुम एकमूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि,
हे कोटिमूर्ति तुमको प्रणाम,
युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भॄकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की,
खींचते काल पर अमिट रेख,
तुम बोल उठे युग बोल उठा,
तुम मौन बने युग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हें संचित करके,
युग-धर्म जगा,युग-धर्म तना,
युग परिवर्तक ! युग-संस्थापक !
युग संचालक ! हे युगाधार !
युग निर्माता ! युग-मूर्ति ! तुम्हें
युग-युग तक युग का नमस्कार !
-सोहनलाल द्विवेदी
13 comments:
हार्दिक शुभकामनायें !
बड़ी ही अच्छी लगती है यह कविता।
haan,Rashtrapita yon hi nahin bana karte.
सुन्दर प्रस्तुति....आभार....
बड़ी ही अच्छी लगती है यह कविता।........
http://sarapyar.blogspot.com/
बचपन की पढ़ी गयी कविताओं में यह कविता आज भी मन मस्तिष्क में अंकित है.. आज तुम्हारी जुबानी सुनकर कविता नयी नयी सी लगी! अन्ना के आनोलन के बीच यह कविता बरबस मन में गूंजती रही!!
सुन्दर कविता, सुन्दर गान!
बहुत सुन्दर!
sunder rachna se parichay karane ke liye aabhar
Iska saransh bta dijiye please
What is the hardwork in copying
Analysis please!!
Analysis please!!
Thanks for sharing this content!
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